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Udham Singh And Jallianwala bagh massacre : the Story of Reveng | जलियांवाला बाग़ : उधम सिंह की कहानी

Posted on August 30, 2021September 3, 2021 by affairssworld

28 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड के स्मारक का जीर्णोद्धार स्वरूप का उद्घाटन किया।

बता दें कि ये उद्घाटन 13 अप्रैल 2021 को जलियांवाला बाग हत्याकांड की 102वीं बरसी पर किया जाना तय था। परंतु महामारी के चलते इस कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया था। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

जलियांवाला बाग के जीर्णोद्धार स्मारक का उद्घाटन|Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

जीर्णोद्धार के बाद इस स्मारक की संरचना में कई परिवर्तन किये गये हैं। स्मारक के प्रवेश तथा निकासी द्वारों का स्थान परिवर्तित किया गया है।

मेमोरियल के मुख्य हिस्से में एक कमल के आकार के तालाब का निर्माण किया गया। वहीं स्मृति के रूप में चार नयी गैलरियों का निर्माण भी किया गया है।

इसके अलावा इस घटना के मर्म को समझने के लिए एक अत्याधुनिक सांऊड एंड लाईट शो का भी प्रबंध किया गया। जिसके माध्यम से नृशंसता के प्रति संवेदना का अनुभव किया जा सके। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

PM Modi ने किया शुभारंभ| Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

Jallianwala Bagh National Memorial  (Amendment) Act, 2019 के माध्यम से इस स्मारक के जीर्णोद्धार का कार्य किया गया। जिसने Jallianwala Bagh National Memorial Act,1951 का स्थान लिया।

इसके माध्यम से जलियांवाला बाग में एक ट्रस्ट का भी निर्माण किया गया था। जिसमें वर्तमान संशोधन से कुछ परिवर्तन किये गये है। पहले इस ट्रस्ट में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष को स्वतः ही सदस्य बनाया जाता था।

लेकिन नए संशोधन इस बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है। वहीं लोकसभा में विपक्ष के नेता के चयन के स्थान पर, सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ट्रस्ट में शामिल करने का विकल्प भी जोड़ा गया है।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

ऊधम सिंह के पिस्टल को भारत लाने की मांग |Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

पंजाब से ही एक और खबर यह है कि पिछले दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने Ministry of External affairs को पत्र लिखते हुए अनुरोध किया कि विदेश मंत्रालय ब्रिटिश सरकार से शहीद ऊधम सिंह की पिस्टल, डायरी समेत अन्य व्यक्तिगत वस्तुओं को भारत वापस भेजे जाने के मामले में संज्ञान ले। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने लिखा पत्र

दरअसल शहीद ऊधम सिंह को ब्रिटिश शासन के दौरान ब्रिटेन में ही फांसी दे दी गई थी। जिसके बाद उनके शरीर के अवशेषों को तो भारत भेज दिया गया था लेकिन उनसे जुड़ी अन्य सामग्री आज भी ब्रिटेन में ही मौजूद है।

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विदेश मामलों के मंत्री एस. जयशंकर जी पत्र लिखते हुए कहा कि सरदार ऊधम सिंह जुड़ी चीजों से देश को अपने स्वतंत्रता सेनानी की प्रेरणा दायक कहानी को जानने का अवसर मिलेगा।

तथा आजादी के 75वें वर्ष में शहीद ऊधम सिंह के बलिदान के प्रति आभार व्यक्त करने का इससे बेहतर कोई और तरीका नहीं होगा। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

इन दोनों खबरों की प्रासंगिकता और संबंध को समझने के लिए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे रक्तिम अध्याय जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में जानना होगा।

Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

क्या है जलियांवाला बाग हत्याकांड? | What is Jallianwala bagh Massacre

वर्ष 1919, गांधी अफ्रीका से भारत लौट चुके थे। दो-,एक बड़े आंदोलनों के अलावा वह भारत भ्रमण कर चुके थे। अब तक गांधी जी अंग्रेजों के साथ सहयोगी सरकार सहमति बनाने पर विचार कर रहे थे। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

इसी बीच 19 मार्च 1919 को ब्रिटिश सरकार की ओर से Sir Sidney Rowlatt द्वारा The Anarchical and Revolutionary Crime Act, 1919 लाया गया। जिसे भारत में मुख्यतः रॉलेट एक्ट के रूप में जाना गया। 

जिसे लाने के पीछे उद्देश्य यह था कि अंग्रेजी शासन भारत में हो रहे क्रांतिकारी आंदोलनों का दमन कर सके। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

क्या है रॉलेट एक्ट? What is Rowlatt Act

इस कानून में मोटा अक्षरों में लिखा था कि जो भी व्यक्ति या संगठन अंग्रेजी सरकार के खिलाफ किसी भी प्रकार का विरोध या विद्रोह करते हुए गिरफ्तार किया जाता है तो उसे अपना पक्ष साबित करने के लिए वकील, दलील तथा अपील आदि का अधिकार नहीं होगा।

अंग्रेजी शासन का कहना था कि इस कानून को लाने के पीछे का औचित्य मात्र भारत में शांति स्थापित करना है। लेकिन इतिहास बताता है अंग्रेजी शासन इस कानून से स्वतंत्रता की मांग को लेकर उठने वाले सिरों को कुचलना चाहता था। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

30 मार्च आते-आते देश के विभिन्न हिस्सों में काले कानून या रॉलेट एक्ट के विरोध स्वरूप सत्याग्रह, रैलियां तथा आंदोलन प्रारंभ हो गये। 6 अप्रैल को गांधी जी सत्याग्रह आरंभ किया।

जो अफ्रीका से लौटने के बाद उनका पहला व्यापक प्रतिरोध था। 8 अप्रैल को विरोध के फैलते स्वरूप को देखते हुए। अंग्रेजों ने गांधी जी समेत कई अन्य बड़े नेताओं को जेल भेज दिया।

अब बिना किसी बड़े चेहरे के भीड़ अनियंत्रित सा रुप ले रही थी।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

वैशाखी के दिन हुआ नरसंहार

इस विद्रोह की हवा उत्तर भारत पंजाब समेत पंजाब में भी फैल चुकी थी। 13 अप्रैल को उस वर्ष वैशाखी का त्यौहार पड़ा। जैसा कि हम जानते हैं पंजाब में यह बेहद प्रचलित पर्व है।

अंग्रेजी हुकूमत जानती थी कि इस दिन आंदोलन उग्र हो सकता है। इसीलिए अंग्रेजी अफसर कमर कस चुके थे। यहां यह बात जान लेना जरूरी है कि उस वक्त पंजाब के गवर्नर ओ. डायर तथा अमृतसर के सेनापति आर. डायर थे।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

अमृतसर के जलियांवाला बाग में 13 तारीख को सुबह से ही भीड़ जुटने लगी थी। जिसमें बूढ़े, बच्चे, जवान, महिलाएं सभी शामिल थे। दोपहर बाद तक ये भीड़ लगभग 10000-15000 तक हो चुकी थी।

जलियांवाला बाग में अब तक मात्र शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन जारी था। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

बढ़ती भीड़ को देखकर अंग्रेजी अफसरों की चिंता बढ़ रही थी। शाम होने से पहले ही अमृतसर के जनरल आर. डायर ब्लूच और गोरखा रेजीमेंट के सैनिकों की टुकड़ी के साथ जलियांवाला बाग में दाखिल हुए।

इन सैनिकों की संख्या सौ के आस पास रही होगी। इनमें से प्रत्येक के पास एक एक 303 की राइफल्स थी। दोनों टुकड़ियों ने जनरल के दोनों तरफ अपनी पोजिशन ली और अगले ही पल जनरल आर. डायर की एक जोरदार आवाज गूंजी…फायर!

Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

जब जनरल आर.डायर ने दिया गोली चलाने का आदेश

इसके बाद का काम सैनिक अच्छी तरह से जानते थे। जलियांवाला बाग में मौजूद समूह की अग्रिम पंक्ति के ज्यादातर लोग धराशायी हो चुकी थे। भीड़ अब यहां से वहां भाग रही थी।

चूंकि बाहर जाने का रास्ता एक मात्र रास्ता वही था, जहां से गोलियां चल रही थी। इसीलिए लोग बड़ी सी दीवार की ओर बचने को भाग रहे थे। कुछ लोग सिर्फ इसीलिए बाग स्थित कुएं में कूद गए, ताकि वह गोलियों से बच सकें।

इसमें ज्यादातर लोग तैरना भी नहीं जानते थे। जिससे उनकी मौत डूब जाने से हो गई।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

अब तक बाग की दीवारों का रंग लाल हो चुका था। हर तरफ चींखें और चीत्कार थीं। जनरल आर. डायर उछल-उछलकर सैनिकों को भीड़ की ओर फायरिंग करने का इशारा कर रहा था।

प्रत्येक सैनिक तब तक फायरिंग नहीं रोकता जब तक उनकी राइफल्स खाली नहीं हो जाती। उस एक-एक सैनिक ने लगभग 30-35 राउंड फायरिंग की।

जानकार बताते हैं कि बुलेट्स की बनावट इतनी पैनी थी कि वह मांसपेशियां तो ठीक अंदर की हड्डी तक को चीर कर निकल जाती थी।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

शाम ढलने तक जलियांवाला बाग की भूमि पर हजारों शवों का भार आ चुका था। मृतक के परिजन शव उठा नहीं सकते थे। घायल अस्पताल नहीं जा सकते थे।

क्योंकि जलियांवाला बाग में मौजूद प्रत्येक जिंदा व्यक्ति को अंग्रेजी सरकार जेलों में डाल रही थी। इस घटना में अंग्रेजी सरकार ने 500 के लगभग मौतों को स्वीकार किया जबकि वास्तव में यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा था।

हन्टर जांच आयोग की रिपोर्ट के बाद जनरल आर. डायर को बर्खास्त कर इंग्लैंड में दिया गया। लेकिन इंग्लैंड में उसे साहस के लिए पुरस्कारों से नवाजा गया।

इस घटना के विरोध में रविन्द्र नाथ टैगोर ने नाइटहुड की तथा गांधी ने कैसर-ए-हिंद समेत कई अन्य लोगों ने उपाधि व सम्मान लौटा दिये। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

Udham Singh and Jallianwala bagh massacre
Image Source- Google Image by – Jagran Josh

ऊधम सिंह की बने प्रत्यक्षदर्शी

धीरे धीरे देश इस घटना को भूलने लगा, लेकिन एक सीने में अब भी प्रतिशोध की आग जल रही थी। हत्याकांड से पहले एक अनाथ लड़का उन सिंह आंदोलनकारियों को पानी पानी पिला रहे था।

मौत का ऐसा विकराल रूप देखकर ऊधम सिंह ने निश्चय कर लिया की वह एक दिन डायर के सीने में गोली उतार कर इस नृशंसता का बदला जरूर लेगा।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

ऊधम सिंह बचपन से अनाथ थे उनकी परवरिश एक अनाथालय में हुई। जैसे ही वह मैट्रिक पास करके अनाथालय से निकले कुछ समय बाद ही जलियांवाला बाग की घटना हुई और वे प्रत्यक्षदर्शी बने।

इसके बाद कई वर्षों तक ऊधम सिंह भारत के क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय रहे। वर्ष 1924 में अमेरिका चले गए जहां वे पहले से मौजूद क्रांतिकारी दल गदर पार्टी से जुड़े और आज़ादी के नारे को बुलंद किया‌।

इसी दौरान वह यूरोप समेत दुनिया भर के भारतीयों से जुड़े।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

भगत सिंह को माना गुरु

1927 में वे एक बार फिर भगत सिंहजी भारत के आदेश पर भारत लौटे। आजादी के की यात्रा में सक्रिय भूमिका निभाने लगे। इनका मुख्य कार्य क्रांतिकारियों को हथियार उपलब्ध कराना था।

इसी बीच उन्हें अवैध हथियार रखने के आरोप में जेल भेज दिया गया। जहां वे पांच साल रहे। भगत सिंह उम्र में ऊधम सिंह से छोटे थे। लेकिन वह उन्हें अपना गुरु मानते थे और हमेशा पर्स में उनकी एक तस्वीर रखा करते थे। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

बता दें कि इसी बीच 23 जुलाई 1927 को 62 वर्ष की उम्र में पूर्व अंग्रेजी जनरल तथा जलियांवाला बाग का सूत्रपात आर. डायर 62 वर्ष की आयु में ब्रेन हैमरेज के चलते मृत्यु का शिकार बना।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

जर्मनी के रास्ते पहुंचे ब्रिटेन

जेल से छूटने के बाद ऊधम सिंह फिर ब्रिटेन जाने के प्रयास में जुट गए। लेकिन अब रास्ता मुश्किल था क्योंकि ऊधम सिंह का नाम अब आपराधिक रिकॉर्ड में आ चुका था।

इसीलिए वह कश्मीर होते हुए जर्मनी और अन्य युरोपीय देशों से होते हुए, जैसे तैसे 1934 में इंग्लैंड पहुंचे। जहां वह पहचान बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद के नाम से रहने लगे। और अपने बदले की योजना बनाने लगे।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

13 मार्च 1940, ऊधम सिंह को कहीं से पता चला कि जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय पंजाब का गवर्नर रहा माइकल ओ. डायर लंदन स्थित Caxton Hall में होने वाली ईस्ट इंडिया एसोसिएशन तथा रॉयल सेन्ट्रल एशियन सोसायटी की मीटिंग में शामिल होने आ रहा है।

ऊधम सिंह को जिस मौके की तलाश थी शायद ये मौका वहीं था।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

गवर्नर ओ. डायर से लिया बदला

इसी दिन दोपहर को ऊधम सिंह ने पॉल रॉबिनसन की फिल्म प्राउड वैली देखने का मन बनाया और अपने घर से सिनेमा हॉल की तरफ बढ़ चले।

जब वह सिनेमा घर पहुंचे तो उस किसी कारण से सिनेमा हॉल बंद किये गया थे। सड़क के एक किनारे खड़े होकर जब आदतन ऊधम सिंह ने जेब में हाथ डाला तो उनके हाथ में वहीं चिट्ठी पड़ी जिस पर Caxton Hall की मीटिंग का विवरण था। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

अब ऊधम सिंह तेजी से घर की ओर लौटे और एक किताब के अंदर पिस्टल की आकार की जगह बनाकर उसमें पिस्टल को छुपा दिया। और गोलियों को अपनी जेब में रख लिया।

सिर पर एक हैट तथा घुटनों तक आने वाले कोट को पहन कर ऊधम सिंह Caxton Hall में दाखिल हुए।

जैसी ही पूर्व गवर्नर ओ डायर की में से बोलने की बारी आई मौका पाते ही, ऊधम सिंह ने अपने काम को अंजाम दे दिया।Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

इस घटना के बाद ऊधम सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया। 31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया। जिसके 40 साल बाद उनके अवशेषों को भारत भेजा गया।

उनकी अस्थियां जलियांवाला बाग समेत भारत की सात जगहों पर स्थापित की गई। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

लेकिन उनकी कई व्यक्तिगत चीजें आज भी ब्रिटेन में मौजूद हैं। बताया जाता है कि उनकी पिस्टल ब्रिटेन के एक क्राइम म्यूजियम में है। वहीं जलियांवाला बाग की दीवारों पर आज शहीदों के नाम लिखे हुए हैं। Udham Singh And Jallianwala bagh massacre

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