Task Force 74
1971 में 100,000 पाकिस्तानी सैनिक भारत की सेना और नौसेना के बीच फस गये थे, जसिमें से 97,000 ने आत्मसमर्पण कर दिया, जो की दूसरे विश्व युद्ध के बाद अभी तक का सबसे बड़ा आत्म समर्पण था. इस आत्म समर्पण की कहानी जितनी मजेदार है उतनी है क्रूर भी है।
क्योंकि तब भारत इतना बड़ा और काबिल देश नही था जितना अब है. लेकिन तत्कालीन प्रधान नेत्रत्व के चलते और अपनी सेना के पराक्र्म से दम पाकिस्तान को आत्म समर्पण करवाने में कामयाब रहे, तब बाग्लादेश जो की पाकिस्तान के कब्ज़े में था.
वो एक नया देश बन के उभर पाया उससे पहले पाकिस्तान उनपर जबरन हुकूमत करता था और उनको अपने नापाक मंसूबो के लिए इस्तेमाल करता था, पाकिस्तान जबरन उन्हे उर्दू भाषा अपनाने और उसे ही इस्तेमाल करने को भी कहता तथा उनके किसी भी राजनेता की एक ना सुन के पाकिस्तान हमेशा अपनी ही मनमानी करता था.

1971 के दौरान पाकिस्तान और अमेरिका इतने करीबी थे की भारत के खिलाफ नेक्सन सरकार जो की उस वक़्त के अमेरिका के रॅस्ट्रा पति थे, उन्होने अपनी टास्क फोर्स 74 (Task force 74)भारत के खिलाफ बंगाल की खाड़ी में उतार दी.
जो भारत के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा मजबूत और ताक़तवर थी. पर सोवियत संध की सहयता से भारत ने इस स्थिति पर काबू पाया और बाद में पता चला अमेरिका ने सिर्फ़ दोहरी चाल चल के ये दिखाना चाहा की वो अपने मित्र राष्ट्र की मदद करता है.
जबकि उन्होने टास्क फोर्स 74 (task force 74) को भारत पे हमले के कोई भीनिर्देश नही दिए थे।
टास्क फोर्स 74 क्या है ? (What is Task Force 74 )
ये सयुंक्त राष्ट्र अमेरिका की सातवे बेड़े से इक्खट्टा हुई एक टास्क फोर्स थी, जिसे 1971 में भारत पाकिस्तान की लड़ाई में अमेरिका के प्रेसीडेंट की तरफ से बंगाल की खाड़ी में तैनात रहने को भेजा गया था.
सोवियत संध जो उस दौरान राजनीतिक और सेन्या दोनो तरफ से भारत की तरफ था और सक्रिए तरह से करवाई में भारत का साथ दे रहा था. उसने अपना बेड़ा तब तक अमेरिकी विध्वंशक बेड़े की तरफ लगा के रक्खा जो भारत के बेड़े से बहुत ज़्यादा ताक़तवर थे.
टास्क फोर्स नंबर का उपयोग अब यूएस सातवा फ्लीट की पनडुब्बी बल द्वारा किया जा रहा है.
टास्क फोर्स क्यूँ भेजी गई( Why America send Task force 74)
12 दिसंबर को जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई गयी, तो मौजूदा प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षयता कर रहे ज़ुल्फ्कार अली भुट्टो और संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के प्रतिनिधि जॉर्ज वुश सीनीयर का मुकाबला करने के लिए स्वर्ण सिंह को भेजा।
उन्होने पाकिस्तान पे तंज़ कारसे हुए कहा की “क्या श्री भुट्टो अभी भी भारत पे जीत हासिल करने का सपना देख रहे है” इस वचन के बाद वुश ने युद्या में भारत की मंशा के बारे में सवाल किया तो स्वर्ण सिंह ने उल्टा उन्ही से सवाल कर के उन्हे घेरने की कोशिश की, जिसके बाद सोवियत संध ने सुरक्षा परिषद के प्रस्ताओ के मसौदे पर वीटो कर भारत को बचाया।
इसके बाद निक्सन और किसिजर ने ये तय किया की वो पूर्वी पाकिस्तान जो इस वक़्त बाग्लादेश है, वहा से अपनी सेना निकालने के बहाने अमेरिकी बेड़े यूयेसेस एंटरप्राइज़ को तुरंत बंगाल की खड़ी की तरफ भेजने को कहा।
लेकिन अचांबे की बात ये थी एक दिन पहले ही अमेरिका ने सबको वाहा से निकाल लिया था, उसके बाद उन्होने भुट्टो को सूचित किया की उन्होने बेड़ा बंगाल की खड़ी में भेजा है.
उन्होने ये भी कहा की वो तबतक बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ते चले जाएगे जब तक भारत अपनी सेना को पूर्वी पाकिस्तान से निकाल नही लेता.
भारत के मुकाबले अमेरिका का बेड़ा बहुत बड़ा था. अमेरिका के इंटेरप्रिज़े के मुक़ाबले भारत का आईएनएस विक्रांत पाच गुना तक ज़्यादा छोटा था. उनका विमान बड़ा होने के साथ साथ हतियारो से लेश था.
काई विध्वंशक और परमाणु उर्जा से से लेश इंटरप्राइज़ इतना ताक़त वर था की दुबारा ईंधन भरे पूरी दुनिया का एक चक्कर लगा सकता था. दूसरी तरफ विक्रांत के बाय्लर भी पूरी तरह काम नही कर रहे थे. लेकिन सोवियत संध के बेच बचाओ के चलते वो वाहा से चला गया.
टास्क फोर्स का मक़सद बाद में बताया (What is the Intent of Task Force 74)
लेकिन बाद में अमेरिका के जहाज़ के मुखिया जब एक बार अमेरिका के एक कालेज में भाषा देने गये तो उनसे पूछा गया की 1971 में बंगाल की खड़ी में तैनात जहाज़ का क्या मक़सद था, तो उन्होने बताया की उन्हे कुछ कह के नही भेजा गया था.
लेकिन शायद अमेरिका ये दिखाना चाहता था की हम अपने सहियोगीयो की मुसीबतो में आगे रहते है . उनके ये पूछने पे की अगर भारत ने किसी पोत ने उनपे कार्यवाही की तो ऐसी दशा में वो क्या करेगे, तो उनसे कहा गया था।
ऐसी सिचुयेशन में आप जो चाहे कदम उठाने के लिए पूरी तरह से स्वतन्त्र है.
थर्ड इंडो – पाकिस्तानी वॉर
जब 1971 में बिगड़े हलतो में अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना का साथ देने का निर्णय लिया, तब प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने सोवियत संध के साथ संधि पर साइन कर दिया.
जिससे भारत को पाकिस्तान से लड़ाई के दौरान किसी भी चीनी हस्तसेप के खिलाफ कवर देने का वादा था, जिससे भारत का ये दर की अमेरिका चीन को कह रहा है, भारत के खिलाफ जंग के लिए इसका प्रेशर ख़त्म हो गया और भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को बंगलादेश से खदेड़ दिया, 3 दिसंबर 1971 को भारत पाकिस्तान की लड़ाई की अधिकारिक शुरुवत हुई और आपरेशन चंगेज ख़ान शुरू किया गया.
फिर 5 दिसंबर को अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में युधया विराम प्रस्ताओ लाकर दखल दिया, जिसको सोवियत संध ने अपने वीटो पॉवेर से द्वास्त कर दिया.
जिसके बाद सोवियत और अमेरिका में भी तनातनी शुरू हो गयी थी, इसके बाद एक खबर अमेरिका तक गयी की भारत पाकिस्तान पर आक्रामक करवाई की योजना बना रहा है.
तो अमेरिका ने अपना 10 जहाज़ नौसैनिक टास्क फोर्स जिसको हम टास्क फोर्स 74 (task force 74) भी कहते है. भारत को घेरने के लिए बंगाल की खड़ी में भेजा.
टास्क फोर्स (task force 74)कितनी ज़्यादा ताक़तवर थी ?Task Force 74 Strength
टास्क फोर्स (task force 74) दुनिया की सबसे ज़्यादा ख़तरनाक विमानवाहक पोत थी और अभी भी है, इसमें तरह तरह के हतियार, परमाणु उर्जा से के उपकरण, यूएस त्रिपोली ( एच पी एस 10) शामिल था।
जिसमें 200 मजबूत बटलीयन और 50 हालिकॉप्टेर थे, तीन मिसाइल यूएस किंग ( डी डी जी- 41 ), यूएस दिकचेर ( डी डी जी 31 ) और यूएस पेसेन्स ( डी डी जी- 33) थी.
जिसके साथ चार बंदूक विद्वंशक यूएस बोउ सेल ( डी डी -745 ) यूएस आरसल ( डी डी- 836 ) और यूएस एडर सन एक बारूदी जहाज़, यूएस वाइट प्लॅन्स थे. ये जहाज़ 13-14 दिसंबर की रात को पार कर 14 को बंगाल की खड़ी में आ पहुचे थे
और धीमी गति से दो दो ईंधन चालक जहाज़ इसके साथ चल रहे थे.
टास्क फाॅर्स 74 क्या है ?
ये सयुंक्त राष्ट्र अमेरिका की सातवे बेड़े से इक्खट्टा हुई एक टास्क फोर्स थी, जिसे 1971 में भारत पाकिस्तान की लड़ाई में अमेरिका के प्रेसीडेंट की तरफ से बंगाल की खाड़ी में तैनात रहने को भेजा गया था.
रूस ने भारत की सहयता 1971 में कैसे की थी ?
जब अमेरिका 1971 में अपने टास्क फोर्स 74 भेजा तो स्तिथि को गंभीर लेते हुए रूस ने भी अपने समुद्र के एक जंगी बेड़े को बंगाल की कड़ी में उतार दिया।
सोवियत संघ की प्रतिक्रिया
युध्य विराम पर वीटो कर के पहले ही सोवियत संध अमेरिका को आख दिखा चुका था, फिर उसने भारत के साथ संधि करी और भारत को हर तरह से सपोर्ट किया.
जब भारत को डराने या यूँ कह ले युद्या के लिए अमेरिका ने अपनी टास्क फोर्स 74 भेजी तो सोवियत संध ने भी 6 से 16 दिसंबर के बीच अपने क्रूसेर विमान और विध्वंशको के दो समूह और परमाणु मिसाइलो से लेस एक पनडुब्बी को बंगाल की खड़ी में टास्क फोर्स के पीछे भेजा और यूएष टास्क फोर्स के पीछे ना हट जाने तक उसका पीछा करते रहे.
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इससे पहले भारत पर हमला करने के लिए अमेरिका चीन को भी बहका रहा था की वो भारत पर हमला करे पर 1971 में चीन ने किसी भी तरह से इस में भाग नही लिया पर भारत को डर था की अगर ऐसा हुआ तो उसको अपने सैनिक उस तरफ भेजने पद सकते है.
जिस बात को पाकिस्तान भी अपना हतियार मान कर चल रहा था. पर भारत ने उस दौरान सोवियत संध के साथ संधि पर राज़ी होकर खुद को पूरी तरह बचा लिया और पाकिस्तान और अमेरिका के नापाक मंसूबो पर पानी फेर दिया.