क्रीमी लेयर पर आया सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला (Supreme court decision on creamy layer obc)
आइये जानते हैं क्यों है चर्चा का विषय
Supreme court decision on creamy layer obc: सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार के संदर्भ में एक निर्णय सुनाया है, जिसमे पिछड़ा वर्ग आरक्षण के विषय में कहा गया है कि आरक्षण का दायरा केवल और केवल आर्थिक आधार पर तय नहीं होना चाहिये। अन्य मानकों को भी ध्यान में रखना चाहिए। केवल आर्थिक आधार पर हम क्रीमी लेयर को परिभाषित नहीं कर सकते।
क्रीमी लेयर को परिभाषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अन्य मानकों के सुझाव भी दिये हैं।
जैसे आय के अतिरिक्त पद, ओहदा, नौकरी, और व्यवसाय को भी संज्ञान में लिया जाए।
क्या है पूरा मामला Supreme court decision on creamy layer obc का
सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला हरियाणा सरकार की दो अधिसूचनाओं के संदर्भ में आया है। इन अधिसूचनाओं को क्रमशः 2016 और 2018 में हरियाणा सरकार के द्वारा लाया गया था।
इन अधिसूचनाओं के अंतर्गत हरियाणा सरकार ने कहा था, कि जो पिछड़ा वर्ग है उनको हम दो आधारों पर आरक्षण देंगे।
1.उन लोगों को जिनकी वार्षिक आय तीन लाख या उससे कम है, ऐसे पिछड़े वर्ग (OBC) के लोगों को हरियाणा सरकार सरकारी सेवा में और शिक्षण संस्थाओं अध्ययन हेतु आरक्षण देगी।
2.तीन लाख से कम आय वाले लोगों को आरक्षण देने के बाद बाकी जो कोटा बचेगा, उसमें तीन लाख से छः लाख वार्षिक आय वाले पिछड़े वर्ग (OBC) के लोगों को आरक्षण देने की बात कही गई है।
हरियाणा सरकार ने स्प्ष्ट कहा है कि हरियाणा सरकार छः लाख रुपये वार्षिक आय से ज्यादा वाले पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) परिवारों को आरक्षण नहीं देगी।Supreme court decision on creamy layer obc:
इन्ही दोनों याचिकाओं के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने स्प्ष्ट कर दिया कि हरियाणा सरकार द्वारा तीन लाख और छः लाख की सीमा तय करना गलत है, आरक्षण का आधार केवल आर्थिक नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी बताया की आरक्षण और किन किन आधारों को मानक बनाकर तय होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में बताया कि सरकार को आरक्षण तय करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए (ध्यान रखें ये सारी बातें पिछड़ा वर्ग अर्थात ओबीसी (OBC) के संदर्भ में हो रहीं हैं।)
1.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का आरक्षण तय करते समय उसके सामाजिक तौर पर ऊंचे कद को ध्यान में रखना चाहिए।
2.आरक्षण तय करने के पैमाने में सरकारी नौकरी या सरकारी सेवा में पद को भी शामिल करना चाहिए।
3.अगर कोई व्यवसायी हो या ऐसा काम करता हो जिसमें वह अन्य लोगों को भी रोजगार देता हो तो इस बात का भी ध्यान रखा जाए।
4.ऐसे व्यक्ति जो भले ही पिछड़े वर्ग से आते हों, परन्तु उनका कृषि जोत अधिक है। इसको भी मानक बनाना चाहिये।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को क्रीमी लेयर में ही रखा जाए ना कि आरक्षण दिया जाए।
इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मानदंडों के आधार पर क्रीमी लेयर को परिभाषित किया है। केवल और केवल आर्थिक आधार को मानदण्ड बनाने को गलत ठहराया है। जैसा कि हरियाणा सरकार ने अपनी अधिसूचनाओं में प्रावधान किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ वाद 1992 का हवाला दिया है। इसी वाद के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हालिया निर्णय सुनाया है।Supreme court decision on creamy layer obc:

क्या है इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ 1992 का वाद
पहली बार क्रीमी लेयर शब्द की चर्चा इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ वाद 1992 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया गया था,
इस वाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ये कहा गया था कि पिछड़ा वर्ग क्रीमी लेयर को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
इस वाद में ये भी कहा गया कि आईएएस / आईपीएस / एआईएस (IAS / IPS / AIS) ऐसी सेवाओं में कार्यरत पिछड़ा वर्ग के जो लोग हैं वह स्वतः ही सामाजिक तौर पर उन्नत हो चुके हैं, तो ऐसे लोगों को क्रीमी लेयर में माना जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे लोगों को अगर आरक्षण दिया जाएगा तो वह व्यक्ति समाज में पीछे रह जायेगा जिसे वास्तव में आरक्षण की जरुरत है।Supreme court decision on creamy layer obc:
यह वाद 13 अगस्त 1990 को भारत सरकार द्वारा मण्डल आयोग की सिफारिश पर पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण का प्रावधान किये जाने के सम्बंध में है। जो भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) के लोग हैं, उनको 27% आरक्षण देने की बात कही गयी थी। SEBC मतलब socially and educationally backward class.
भारत सरकार के इसी प्रावधान के विरोध में इंदिरा साहनी द्वारा वाद दायर किया गया जिसका निर्णय सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवम्बर 1992 को सुनाया।Supreme court decision on creamy layer obc:
अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ठीक है भारत सरकार 27℅ आरक्षण पिछड़े वर्गों को दे परन्तु इस आरक्षण के दायरे में पिछड़े वर्ग के क्रीमी लेयर को नहीं लाना चाहिए, जहाँ से पहली बार क्रीमी लेयर अवधारणा का जन्म हो।
क्रीमी लेयर को लेकर भारत सरकार की समस्या
सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्रीमी लेयर की बात कहे जाने से भारत सरकार के सामने एक समस्या उत्पन्न हो गई, भारत सरकार को ये नहीं समझ आ रहा था कि क्रीमी लेयर को कैसे परिभाषित करें और किन लोगों को इसके दायरे में लाएँ। जिसके समाधान के लिए भारत सरकार ने आर एन प्रसाद समिति का गठन किया। आर एन प्रसाद सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज थे, जो इस समिति की अध्यक्षता कर रहे थे।
इस समिति के सुझावों के आधार पर भारत सरकार ने 8 सितंबर 1993 को एक अधिसूचना जारी की जिसमें सरकार ने बताया कि निश्चित रैंक, आय, या दर्जा (status) के आधार पर एक सूची तैयार की जायेगी। और उस सूची के आधार पर तय किया जाएगा कौन क्रीमी लेयर के दायरे में है और कौन नहीं।
आय के विषय में उन्ही लोगों को देखा गया जो सरकारी सेवा में नहीं हैं,
और अगर कोई सरकारी सेवा में है तो फिर उसके रैंक और पद को महत्त्व दिया जाना चाहिए।
क्रीमी लेयर को लेकर वर्तमान स्थिति
वर्तमान समय में अगर किसी पिछड़े वर्ग के व्यक्ति जो सरकारी सेवा में नहीं है कि आय 8 लाख या अधिक है, तो उसे और उसके बच्चों को क्रीमी लेयर के दायरे में माना जाता है।
आपको बता दें कि 8 लाख आय का आधार 2017 में तय किया गया आधार है।
सरकार ये आधार प्रत्येक तीन वर्षों में बदलती है और कई बार नहीं भी बदलती है, इस बात को लेकर काफी खींचतान की स्थिति बनी रहती है।
वर्तमान समय में संसदीय बोर्ड की पिछड़ा वर्ग कल्याण समिति ने आय का आधार 8 लाख से बढ़ा कर 15 लाख करने और सरकारी सेवक, संवैधानिक पद, ग्रुप A सेवा, तथा ग्रुप B सेवा वालों को आरक्षण नहीं देने का सुझाव दिया है।
हालांकि सरकार ने कहा है कि हम 15 लाख नहीं 12 लाख आय के आधार पर विचार करेंगे। देखना होगा कि सरकार अंततः कितना आय का आधार तय करती है।
क्रीमी लेयर को लेकर मतभेद
क्रीमी लेयर को लेकर काफ़ी मतभेद हैं जिनको व्यापक विचार विमर्श के बाद दूर करने की आवश्यकता है।जैसे…
1.क्रीमी लेयर के दायरे का ठीक प्रकार से पुनर्निधारण करने की आवश्यकता है।जिससे हर राज्य उचित रूप रेखा के अनुसार काम कर पाए और बार बार न्यायालय को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता न पड़े।
2.केवल पिछड़े वर्ग (OBC) क्रीमी लेयर को लेकर प्रश्न उठते रहे हैं, की आखिर क्यों केवल पिछड़े वर्ग में ही क्रीमी लेयर को विचार किया जाता है,अन्य वर्गों में क्यों नही।
3.सरकार का एक पक्ष ये भी है कि क्रीमी लेयर के दायरे को निर्धारित करने के लिए कृषि के अतिरिक्त अन्य सभी आय स्त्रोतों को शामिल किया जाए। हाल ही में सरकार ने NCBC यानी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को एक ड्राफ्ट सौंपा जिसमे ये बात कही गई थी।
निष्कर्ष:- Supreme court decision on creamy layer obc:
विभिन्न राजनीतिक दलों एवं विभिन्न राज्य सरकारों के बीच खींच तान की स्थिति बनी हुई है, ऐसा ही हमें हरियाणा में देखने को मिला। अतः क्रीमी लेयर के दायरे के लिए पूरे देश में पर्याप्त और व्यापक बहस जिसमें सभी पक्ष शामिल हों, उसके बाद एक समान कानून एक समान परिभाषा एवं व्याख्या की आवश्यकता है।
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