Sports Day 2021 In India : – खेल, आज जब भी खेलों के बारे में बात की जाती है तो नवीन पीढ़ी के दिमाग में क्रिकेट या कुछेक ऑनलाइन का नाम ही सामने आता है।
आज मैदानों में जाकर शारीरिक जोर आजमाइश वाले खेलों को का प्रचलन बहुत दूर जा चुका है। जिसका एक बड़ा कारण है बढ़ता शहरीकरण। शहरों में आज मैदानों का मिल पाना रेगिस्तान में पानी ढूंढने के जैसा प्रतीत होता है।
तकनीकी खेलों से पीछे छूटते शारीरिक खेल (Sports Day 2021 in India)
इसके अलावा भारत में वातावरण ऐसा है कि यहां खेलने से ज्यादा किताबी ज्ञान को महत्व दिया जाता है। जबकि यह नहीं देखा जाता है कि खेल साझेदारी, परिश्रम, नेतृत्व और निर्णयन क्षमता जैसे कौशलों को वास्तविक ज्ञान रूप में सिखाता है।
इसके शारीरिक क्रियाएं मानसिक अवसादों को भी दूर करतीं हैं। ये बिल्कुल वैसा ही कि हम ओलंपिक में मेडल तो चाहते हैं लेकिन अपने बच्चों को खेलने नहीं देना चाहते।
लगातार तकनीकों के पीछे भागती मानव सभ्यता कहीं न कहीं मैदानों पर जाकर पसीना बहाना भूल गई है। आज मनोरंजन के इन साधनों का स्थान तकनीक ने ले लिया है। ऐसे में इस बात को याद रखना भी जरूरी है यदि आज बच्चे खेलेंगे नहीं तो कल हमें खिलाड़ी मिल पाना मुश्किल होगा।
इस भविष्य में उपजने वाली समस्या का अंदाजा सरकार को था। इसीलिए खेल जागरूकता को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2012 से 29 अगस्त को खेल दिवस के रूप में घोषित किया है। Sports Day 2021 In India में भी 29 अगस्त को ही मनाया जायेगा, अब सवाल उठता है 29 अगस्त ही क्यों?
हॉकी के जादूगर Major dhyan chand की याद में ‘खेल दिवस’
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हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। किसी भी परंपरा को प्रदीप्त करने के लिए एक युगपुरुष की आवश्यकता होती है। हॉकी को राष्ट्रीय खेल बनाने तथा घर घर तक प्रचलित करने का श्रेय हॉकी के जादूगर Major Dhyan Chand को जाता है।
Major Dhyan Chand जी का जन्म 29 अगस्त 1905 को ही हुआ था। जिनके सम्मान में इस दिन को खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विभिन्न खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों तथा प्रशिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।
Major Dhyan Chand ने 3 ओलंपिक में किया भारत का प्रतिनिधित्व
Major Dhyan Chand सिंह भारतीय फील्ड हॉकी के टीम के बेहद दिग्गज खिलाडी और कप्तान भी रहे।। उन्हें भारत एवं विश्व हॉकी के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन खिलाडियों में शुमार किया जाता है।
वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं जिनमें 1928 का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, 1932 का लॉस एंजेल्स ओलोम्पिक एवं 1936 का बर्लिन ओलम्पिक शामिल है।
सेना में सिपाही से Major Dhyan Chand
इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में जन्मे Major Dhyan Chand जी का बचपन से खेल के प्रति कोई विशेष रुझान नहीं था।
इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा जन्मजात नहीं थी, बल्कि उन्होंने सतत साधना, अभ्यास, लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी।
शिक्षा प्राप्त करने के बाद लगभग 16 वर्ष की आयु में, 1922 ई. में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भर्ती हो गए।
बचपन से खेल में नहीं रही रूचि
जब Major Dhyan Chand ‘फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट’ में भर्ती हुए उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी या रूचि नहीं थी।
Major Dhyan Chand को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजीमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को है। मेजर तिवारी स्वंय भी खेल प्रेमी और खिलाड़ी थे। उनकी प्रेरणा से Major Dhyan Chand हॉकी खेलने लगे।
देखते ही देखते एक पौधे ने ना सिर्फ वृक्ष का आकार लिया बल्कि अपने फलों और छाया से औरों को भी कृतार्थ किया। वह दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए।
सन् 1927 ई. में Major Dhyan Chand सिपाही से लांस नायक बना दिए गए। सन् 1932 ई. में लॉस ऐंजल्स ओलंपिक के बाद, वे नायक नियुक्त हुए। सन् 1937 ई. में जब Major Dhyan Chand भारतीय हाकी टीम के कप्तान बने तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। Sports Day 2021 In India
जब तानाशाह हिटलर भी हो गया Major Dhyan Chand से प्रभावित
Major Dhyan Chand को, फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती कि वह किसी जादुई स्टिक से खेल रहे हैं।
यहाँ तक कि हॉलैंड में एक मैच के दौरान उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका के चलते उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गई। जापान में Major Dhyan Chand की हॉकी स्टिक से जिस तरह गेंद चिपकी रहती थी उसे देख कर उनकी हॉकी स्टिक में गोंद लगे होने की भी बात कही गई।
Major Dhyan Chand जी की कला के चर्चे ना सिर्फ देश में गर्व से सुनाई पड़ते थे बल्कि विदेशों में भी उनके कारनामे मशहूर थे। Major Dhyan Chand हॉकी की कलाकारी देखकर हॉकी के मुरीद तो वाह-वाह कह ही उठते थे बल्कि प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाड़ी भी अपनी सुधबुध खोकर उनकी कलाकारी को देखने में मशगूल हो जाते थे।
Major Dhyan Chand की कलाकारी से मोहित होकर ही जर्मनी के रुडोल्फ हिटलर सरीखे जिद्दी सम्राट ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने की पेशकश कर दी थी। लेकिन Major Dhyan Chand ने हमेशा भारत के लिए खेलना ही सबसे बड़ा गौरव समझा।
ध्यान सिंह से Major Dhyan Chand
Major Dhyan Chand का असली नाम ध्यान सिंह था लेकिन वह रात को चन्द्रमा की रोशनी में प्रैक्टिस करते थे इसलिए इनके साथियों इनके नाम का पीछे चंद लगा दिया। Major Dhyan Chand
एक समय था जब विश्व भर में भारतीय हॉकी का सिक्का चलता था। भारत के नाम पर लगातार आठ बार ओलंपिक गोल्ड मेडल जीतने का रिकार्ड है। इस रिकॉर्ड को छोड़ना तो दूर, आज तक कोई की आस पास भी नजर नहीं आई है। इस हॉकी के स्वर्णिम युग के जननायक Major Dhyan Chand जी ही रहे।
हॉकी में स्वर्णिम युग के पुरोधा मेजर ध्यानचंद
Major Dhyan Chand ने तीन ओलिम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया। भारत ने 1932 में 37 मैच में 338 गोल किए, जिसमें 133 गोल Major Dhyan Chand ने किए थे।
दूसरे विश्व युद्ध से पहले Major Dhyan Chand ने 1928 (एम्सटर्डम), 1932 (लॉस एंजिल्स) और 1936 (बर्लिन) में लगातार तीन ओलिंपिक में भारत को हॉकी में गोल्ड मेडल दिलाए।
1928 में एम्सटर्डम में हुए ओलिंपिक खेलों में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे। उस टूर्नामेंट में Major Dhyan Chand ने 14 गोल किए।
हॉकी के क्षेत्र में प्रतिष्ठित सेंटर-फॉरवर्ड खिलाड़ी Major Dhyan Chand ने 42 वर्ष की आयु तक हॉकी खेलने के बाद वर्ष 1948 में हॉकी से संन्यास ग्रहण कर लिया। कैंसर की लंबी बीमारी को झेलते हुए वर्ष 1979 में मेजर ध्यान चंद का देहांत हो गया |
कैसे सुधरेगा भारत का ओलंपिक प्रर्दशन?
हाल ही में संपन्न ओलंपिक खेलों में भारतीय महिला एवं पुरुष हॉकी टीम के प्रदर्शन को देख कर पुनः उसी तरीके के स्वर्णिम युग की सुगंध आने लगी है। हॉकी टीम के ही सम्मान में भारत सरकार द्वारा खेलरत्न पुरस्कार का नाम बदल कर Major Dhyan Chand खेलरत्न पुरस्कार कर दिया गया। Major Dhyan Chand
हॉकी के अलावा अन्य खेलों में में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे खिलाड़ियों ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया। भारत ने कुल मिलाकर सात पदक जीते। जो अब तक का भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
बेहतर खेल अवसंरचना की जरूरत
सात पदक यूं तो यह कीर्तिमान है। लेकिन हमारा देश लगभग डेढ़ सौ करोड़ लोगों की आबादी को छूने जा रहा है। इसके अलावा युवा आबादी में भी हम विश्व में शीर्ष पर हैं। फिर भी हम आज ओलंपिक खेलों में दहाई का आंकड़ा तक नहीं छू पाते। सवाल एक बार फिर है क्यों?
शुरुआत में हमने जिन कारणों की बात की थी उनके बावजूद भी यदि कोई खिलाड़ी किसी तरह खेलने के लिए उतर भी जाता है तो ग्रामीण और गरीब परिस्थितियों से आने वाले कई खिलाड़ी केवल अवसंरचना और बुनियादी खेल सुविधाओं के अभाव में अपने हुनर को दुनिया के सामने नहीं ला पाते।
आवश्यकता है कि विभिन्न खेलों को भारतीय क्रिकेट जैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रदान किया जाए। क्रिकेट को भारत में त्यौहार की तरह देखा जाता है। जमीनी स्तर पर क्रिकेट के का ढांचा मौजूद है। हर एक वर्ग के लिए एक विशेष वातावरण तैयार है। जिसका एकमात्र कारण है स्टारडम।
क्रिकेट से लेना होगा सबक
जिस प्रकार क्रिकेट के खिलाड़ियों को हीरो के तौर पर दर्शाया जाता है। उसी प्रकार सभी खेलों के खिलाड़ियों की सफलता के प्रसार करने की आवश्यकता है। जो युवाओं को आकर्षित करेगा। इंडियन प्रीमियर लीग जैसे संस्करणों एक ही खेल तो सीमित ना करके विभिन्न क्षेत्रों पहुंचाया जाना चाहिए।
हालांकि कई स्तरों पर प्रयास जारी हैं जिनमें खेलो इंडिया जैसी मुहिम भी शामिल हैं। जो स्कूल स्तर से विश्वविद्यालय स्तर आयोजित किया जाता है। यह प्रतिभाओं के लिए एक अच्छा मंच है।
इसके अतिरिक्त कई और खेल विशेष फंड दिये जाते हैं। लेकिन इन सब सरकारी प्रक्रियाओं में मौजूद भ्रष्टाचार इन्हें लगातार बाधित करता है।
इसके अलावा पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों को दबा दिया जाता है लेकिन महिला खिलाड़ी लगातार अपने प्रर्दशन से समाज को आईना दिखाने का काम करती आईं हैं।
उभरते सितारे योजना( Sports Day 2021 In India )
हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा ‘उभरते सितारे’ नामक एक योजना लांच की गई। जो उभरते हुए सूक्ष्म लघु एवं मध्यम आकार के उद्योगों को बढ़ावा देने का काम करेगी।
साथ उद्योगों से उन सभी खेल उपकरण तथा खेल सामग्री को बनाने का आह्वान किया गया है जिन्हें विदेशों से खरीदा जाता है। भारत में बनने से इन खेल उपकरणों के मूल्य में कमी आएगी जो खिलाड़ियों को सक्षम बनाने में मदद करेगा।

एक राज्य एक खेल (Sports Day 2021 In India)
हमारे देश के महारथी खिलाड़ी जब खेल आयोजनों में पदक, पुरस्कार जीतकर आते हैं तब विभिन्न क्षेत्रों से उनके ऊपर राशि लुटाई जाती है। लेकिन तैयारी के दौरान उन पर आवश्यक ध्यान नहीं दिया जाता।
सरकारों को आवश्यकता है कि खेल के लिए क्षेत्रीय लीगों का आयोजन किया जाए तथा ‘एक राज्य एक खेल और ‘एक खेल एक कार्पोरेट’ जैसे मॉडल्स को अपनाने की जरूरत है।
मणिपुर में देश का पहला खेल विश्वविद्यालय बनाया जा रहा है। ऐसी अनेक विश्वविद्यालयों की स्थापना की आवश्यकता है। Sports Day 2021 In India
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