
Right To Be Forgotten Law : Latest news
पिछले दिनों Right To Be Forgotten या भूलने का अधिकार काफी चर्चा में रहा। एक रियलिटी शो के प्रतियोगी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है जिसमें उसके Right To Be Forgotten Law का हवाला देते हुए अपने वीडियो, फोटो और लेख आदि को इंटरनेट से हटाए जाने की मांग की।
क्यों चर्चा में है Right To Be Forgotten Law
टीवी कलाकार द्वारा दायर याचिका में यह भी कहा गया कि Right To Be Forgotten, निजता के अधिकार के तहत आता है जिसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) में मिलता है।
इससे पहले पिछले महीने दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका करते हुए याचिकाकर्ता, जो नशीले पदार्थों के विक्रय के मामले पहले भर हो चुका है, ने मांग रखी कि इंटरनेट तथा अन्य सार्वजनिक डोमेन से केस संबंधी समस्त जानकारी को हटा दिया जाए।
कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को Right To Be Forgotten के तहत राहत दी। साथ ही भूल जाने के अधिकार तथा सूचना के अधिकार के बीच के बारीक अंतर को कायम रखा जाए
भूल जाने का अधिकार (Right To Be Forgotten Law ) क्या है?
RTBF, इंटरनेट, सर्च इंजन, वेबसाइटों या किसी अन्य Public Domain पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को उस स्थिति में हटाने का अधिकार है जब उक्त जानकारी की वस्तुस्थिति में परिवर्तन किया जा चुका हो। या जानकारी प्रासंगिक ना ठहरती हो।
गूगल स्पेन के एक मामले में यूरोपीय संघ के न्यायालय CJEU में वर्ष 2014 के निर्णय के बाद RTBF के लिए अन्य देशों में भी मांग उठने लगी। इसी सिलसिले में कई देशों नये कानूनों का प्रावधान कर चुके हैं।
भारत में Right To Be Forgotten Law
भारत में Right To Be Forgotten को समर्पित कोई विशेष प्रावधान नहीं है। लेकिन निजी डेटा संरक्षण विधेयक (Personal Data Protection Bill) 2019 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act), 2000 टुकड़ों में इस अधिकार का संरक्षण करते हैं। IT Act 2000, अनाधिकृत रूप से डाटा संग्रहण पर रोक लगाता है।
2019 का व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक “डेटा प्रिंसिपल के अधिकार” शीर्षक के अध्याय V के खंड 20 में Right To Be Forgotten का उल्लेख मिलता है। जो कि व्यक्ति को अपनी जानकारी प्रतिबंधित तथा सार्वजनिक करने का अधिकार देता है।
Why Is Right To Be Forgotten Law Important?
वर्ष 2017 में पुट्टस्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में नामित किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी व्यक्ति को अपने अनुसार अपनी निजी जानकारी के संरक्षण का अधिकार है। इसके अलावा की उच्च न्यायालयों निर्णयों में भूल जाने के अधिकार के लिए अंतराष्ट्रीय कानून को मान्यता दी है।
इसके अतिरिक्त कई अन्य केसों में गूगल समेत अन्य प्लेटफार्मों के गैर-नैतिक ढंग से डाटा को एकत्रित करना तथा व्यापारिक लाभ के लिए प्रयोग करना अनुच्छेद 21 का उल्लघंन माना गया है। साथ ही यह भी मानने से इंकार नहीं किया जा सकता कि पब्लिक डोमेन में सूचनाएं टूथपेस्ट में से निकले पेस्ट की तरह होती है जिनका वापस जाना लगभग असंभव है।
इसके अलावा इस कानून को लागू करने में बहुत सी चुनौतियां भी सामने आतीं हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत केस के रिकॉर्ड को सार्वजनिक तौर पर सुरक्षित रखना अनिवार्य है। जिससे न्यायिक कारवाई का लेखा जोखा रखा जा सके। ऐसे में भूल जाने का अधिकार न्यायालय संगत नहीं ठहरता।
इसके अलावा सूचना का अधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता आदि कई कानूनों का भूल जाने के अधिकार से टकराव संभव है। अभिव्यक्ति की आजादी पर भी इसका व्यापक असर पड़ सकता है।
निष्कर्ष
कानूनी विविधताओं के बीच गोपनीयता और अधिकारों में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यह प्रावधान किया जा सकता है कि व्यक्ति की मंजूरी के साथ जानकारी को पब्लिक डोमेन में रखा जाए। यदि व्यक्ति इसकी अनुमति नहीं देता तो जानकारी प्रतिबंधित की जाए। लेकिन कुछ हिस्सों से राष्ट्रीय सुरक्षा, अभ्यास तथा साक्ष्यों के लिए इन जानकारियों के प्रयोग की छूट दी जाए
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