आपने अक्सर देखा होगा जब कोई मीडिया में चर्चित या हाईप्रोफाइल घटना सामने आती है, जिससे सरकारों पर तथा जिम्मेदारों पर दबाव बढ़ता है तब अक्सर सरकारें, स्थानीय अफसर या पुलिस अधिकारियों के तबादले या बर्खास्तगी का फरमान जारी कर देती हैं। यह कदम ना सिर्फ शासन की कमजोरियों को दर्शाता है बल्कि पुलिस तंत्र को भी अव्यवस्थित कर देता है।
इसका सबसे गहरा असर पड़ता है उस अधिकारी या पुलिस अधिकारी की मानसिकता पर जिसके ऊपर कार्यवाही की जा रही। निलंबन के बाद जब कोई पुलिस अधिकारी काम पर लौटता है तो उसकी कार्य के प्रति उदासीनता और मोहभंग होना आम बात है। One Nation One
One Nation One Police के उद्देश्य
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ऐसी ही कुछ पुलिस तंत्र की अनियमितताओं से निपटने तथा संगठित सुधारों को लागू करने के लिए अब One Nation One Police के नियम के ढांचे पर विचार करना आवश्यक है।
बता दें कि वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड, एक राष्ट्र, एक रजिस्ट्री, एक राष्ट्र, एक गैस ग्रिड जैसे संरचनात्मक ढांचों के निर्माण हेतु लगातार प्रयासरत है। यहाँ तक कि एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवस्था की चर्चा भी जोरों पर है।
वर्तमान में प्रत्येक राज्यों के पास अपना पृथक-पृथक पुलिस बल होता है जिसे वह अपने ढंग से संचालित करते हैं। केंद्र के पास भी केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए तथा विशेष रक्षा कार्यों के लिए स्वयं का तंत्र मौजूद होता है।
विभिन्न राज्यों के पुलिस ढांचे में विविधता होने से, इनके नियमों भी भिन्न है। जब किसी घटना विशेष की जांच एक से अधिक राज्यों तक पहुंचती है तो औपचारिकताओं में बहुत समय व्यर्थ हो जाता है जो कि घटना के हिसाब से कभी कभी बेहद लापरवाही भरा हो सकता है। ऐसी समस्या को संबोधित करने के लिए One Nation One Police का विचार प्रस्तुत है। One Nation One Police
वाकई, एक ही सुविधा के लिये देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नियम का होना, काफी हैरानी पैदा करने वाले हो सकते हैं। हालाँकि, यह जरूरी है कि जब समरूपता (One Nation One Police) को आकार दिया जाए तो नियमों की विविधता के कारणों को तथा भौगोलिक दशाओं को भी ध्यान में रखा जाए। क्योंकि पुलिस मामलों में आज की स्थिति यह है कि प्रत्येक राज्य एक अलग पुलिस अधिनियम बना रहा है या बनाने पर विचार कर रहा है।
भारतीय पुलिस व्यवस्था का इतिहास
वर्तमान में भारतीय राज्यों में Police Act 1861, IPC 1862 तथा इंडियन एविडेंस एक्ट 1972 के तहत पुलिस बलों का संचालन किया जाता है।
आजादी के पहले तक भारत में भारतीय शाही पुलिस के अनुसार ही पुलिस के शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। 1930 तक इसकी परीक्षा केवल ब्रिटेन में होती थी। 1930 से इसे भारत में भी आयोजित किया जाने लगा। जिसके बाद से इस सेवा में भारतीयों का प्रतिनिधित्व बढ़ा। One Nation One Police
मौजूदा पुलिस तंत्र की बात जाए तो शीर्ष पुलिस अधिकारियों का चयन सिविल सेवा परीक्षा तथा राज्य सेवा परीक्षाओं के माध्यम से किया जाता है। इसके अलावा अन्य परीक्षा तथा शारीरिक परीक्षणों के आधार पर राज्य अन्य स्तरों के पुलिस बल का गठन करते हैं।
पुलिस एक्ट 1861 में राज्य पुलिस के संरचनात्मक ढांचे का चित्रण किया गया है। जो उनकी भूमिकाओं तथा जिम्मेदारी को तय करता है।
वर्तमान पुलिस व्यवस्था का संरचना (One Nation One Police)
सामान्य तौर पर राज्य पुलिस की दो शाखाएं होती है सिविल और सशस्त्र। सिविल बल वह है जो रोजमर्रा के कार्यों का संचालन करता है। जबकि सशस्त्र बलों का प्रयोग संवेदनशील स्थितियों जैसे दंगों आदि से निपटने के लिए किया जाता है।
इसके अलावा एक राज्य की पुलिस किसी में कई स्तरों पर विकेन्द्रीकृत होती है। जिले की पुलिस जोन, रेंज, पुलिस थाने, आदि में विभक्त होती है। एक जिले की सबसे महत्वपूर्ण इकाई SP यानि सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस होता है जिसके जिम्मे पर आतंरिक प्रशासन कार्य करता है। One Nation One Police
इस प्रशासन की सबसे प्राथमिक इकाई पुलिस स्टेशन होता है जिसका इंचार्ज इंस्पेक्टर या सब इंस्पेक्टर होता है जो FIR से लेकर क्षेत्रीय निगरानी का कार्य संभालता है।
राज्य पुलिस बल लगभग 85% पद कांस्टेबलों के लिए, तथा 13-14% पद सब आर्डिनेट रैंक तथा बचे हुए पद उच्च अधिकारियों के लिए होते हैं।
One Nation One Police की आवश्यकता क्यों है? वर्तमान पुलिस व्यवस्था में चुनौतियां
वर्तमान में पुलिस महकमे में राजनीतिक तथा सत्ताधारी दलों में का हस्तक्षेप बढ़ गया है। जिससे कानूनी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक राजनीतिक दल और सरकारें अपने शासनकाल में पुलिस को अपने ढंग से संयोजित करते हैं। इसके अलावा शीर्ष पुलिस पदों पर अपने अनुसार व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है।
यदि व्यवस्थित तरीकों से One Nation One Police जैसे सुधारों को कड़ाई से लागू कर दिया गया तो राजनीतिक दलों का पुलिस प्रशासन से प्रभुत्व कम हो जाएगा। इसीलिए राजनीतिक दल इन सुधारों पर अधिक तवज्जो नहीं देते हैं। ऐसे में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी पुलिस सुधारों में एक बड़ी बाधा है।
पुलिस संगठन में संवेदनशील कार्य संस्कृति का अभाव नजर आता है। बाहरी तत्वों के हस्तक्षेप के चलते किन्हीं तथ्यों को गोपनीय रखना बेहद मुश्किल हो जाता है। One Nation One Police
वैसे भी बढ़ते भ्रष्टाचार के चलते आम व्यक्ति का पुलिस तंत्र के प्रति अविश्वास लगातार घटता जा रहा है।किसी पीड़ित की कानूनी सहायता करना तथा पुलिस स्टेशन तक पहुंचना आज आम व्यक्ति को फंसने जैसा लगता है। बढ़ती गुंडागर्दी और राजनीतिक सांठ-गांठ के चलते आम आदमी को न्याय की आशा करना कठिन है।
यदि आप पुलिस में भर्ती होना चाहते हैं तो आपको कई शारीरिक मानदंडों को पूरा करना पड़ता है। यदि आप जरा भी चूक जाते हैं तो आपका चयन नहीं होता। लेकिन आज के पुलिस बल पर नजर डाली जाए तो उनकी शारीरिक बनावट चयन के मानदंडों के आस पास भी नहीं ठहरती। ऐसी शारीरिक संरचना के साथ सिपाहियों से श्रम शक्ति की आशा रखना बेकार है।
आज भी हमारे आस पास के ज्यादातर पुलिस स्टेशन औपनिवेशिक काल से निर्मित हैं। पुलिस की कार्यशैली आज भी स्याही और कागज तक ही सीमित है। जिससे रिकार्डों का उचित भंडारण कर पाना मुश्किल है। जबकि पुलिस तंत्र आधुनिक नवाचारों को अपनाने की बेहद जरूरत है। अपराधों लगातार नवीन प्रवृत्तियों का प्रयोग बढ़ रहा है। साइबर अपराधों के इस दौर में पुलिस को तकनीकी रूप से सक्षम बनाना आवश्यक है। One Nation One Police
यदि One Nation One Police जैसे सुधारों को लागू कर दिया जाए जाता है तो पुलिस ना सिर्फ अपने दस्तावेजों और संदर्भों का उचित संरक्षण कर पाएगी। जबकि तकनीक के माध्यम से इन्हें पब्लिक डोमेन में रखना आसान होगा तथा पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ेगी।
इसे बढ़ते संसाधनों का दुष्प्रभाव या तकनीक का दोहन कह सकते हैं जिसका परिणाम यह हुआ है कि दिन प्रतिदिन अपराध के नाते तरीकों का इजाद किया जा रहा है। तथा अपराधियों में पुलिस के प्रति डर खत्म हो रहा है। आए दिन पुलिस पर हमला जैसी घटनाएं भी सामने आतीं रहती है। जिसका कारण है पुलिस के पास आधुनिक हथियारों और वाहनों की कमी का होना। इसमें सुधार की आवश्यकता है। One Nation One Police
वेतनमान और पदोन्नति में सुधार के माध्यम से भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से निजात मिल सकता है। लेकिन मनोवैज्ञानिक स्तर पर आवश्यक सुधारों के लिए के लिए ढांचेमें बारे बड़े सुधारों की आवश्यकता है।
भारतीय पुलिस बल में, निचले रैंक के पुलिस कर्मियों को अक्सर उनके वरिष्ठों द्वारा मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है या वे अमानवीय परिस्थितियों में काम करते हैं।
यह गैर-सामंजस्यपूर्ण कार्य वातावरण अंततः जनता के साथ उनके संबंधों को प्रभावित करता है।
पुलिस सुधारों के लिए सिफारिशें (One Nation One Police)
ऐसा नहीं है कि पहली बार पुलिस सुधारों की दिशा में One Nation One Police का प्रावधान लाया गया हो। आजादी के बाद से अब तक बहुत सी समितियों ने सुधार की गुंजाइश की तरफ इशारा किया है।
1977 में पुलिस सुधारों के लिए नेशनल पुलिस कमीशन (NPC) का गठन किया गया। जिसने 1981 तक आठ रिपोर्टों में अपनी सिफारिशें रखीं। आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 में इन्हीं सिफारिशों के आधार पर संशोधन किया गया।
इसके कुछ समय बाद गठित रिबरो समिति ने भी कुछ आंशिक परिवर्तनों के साथ NPC की सिफारिशों को सही ठहराया था। One Nation One Police
जनवरी 2000 में पुलिस सुधारों के लिए गठित पद्मनाभैया
समिति द्वारा 240 सिफारिशों को सुझाया गया। जिसमें पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज की स्थापना से लेकर प्रसाशनिक अधिकारियों को जिला स्तर पर न्यायिक अधिकार देने की बात शामिल थीं।
संवैधानिक प्रावधान (One Nation One Police)
इसके अलावा न्यायपालिका ने भी विभिन्न मामलों में पुलिस सुधारों की ओर इशारा किया है। जिसमें 2006 का मामला उल्लेखनीय है। शीर्ष न्यायालय ने वर्ष 2006 के “प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ” मामले में पुलिस सुधार के लिये 7 निर्देश दिये थे-
- एक राज्य सुरक्षा आयोग का गठन करना।
- डी.जी.पी. का दो साल का कार्यकाल निश्चित करना।
- एस.पी. और एस.एच.ओ. के लिये दो साल का कार्यकाल निश्चित करना।
- एक अलग जाँच प्राधिकरण और कानून व्यवस्था।
- पुलिस संस्थान बोर्ड को स्थापित करना।One Nation One Police
- राज्य और ज़िला स्तर पर पुलिस शिकायत प्राधिकरण को स्थापित करना।
- केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग की स्थापना करना।
- उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद की प्रक्रिया
पुलिस सुधारों पर शीर्ष न्यायालय के निर्देशों के तुरंत बाद, पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी की अध्यक्षता में गृह मंत्रालय की पुलिस अधिनियम मसौदा समिति ने ‘मॉडल पुलिस अधिनियम, 2006’ प्रस्तुत किया।
भारत सरकार को इस मॉडल पुलिस अधिनियम के आधार पर ऐसे परिवर्तनों के साथ एक कानून बनाना चाहिये था, जो उसे आवश्यक लगें और राज्यों को इसे आवश्यक परिवर्तनों के साथ अपनाना चाहिये था।
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इस मॉडल अधिनियम से पूरे देश में एक समान पुलिस ढाँचा सुनिश्चित होता। परंतु ऐसा नहीं हुआ और केंद्र सरकार “मॉडल पुलिस एक्ट” पारित करने से बचती रही।One Nation One Police
कई राज्यों ने, किसी केंद्रीय मार्गदर्शन या निर्देश के अभाव में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का खुले तौर पर उल्लंघन करते हुए अपने पृथक पुलिस अधिनियम पारित किये।
इन राज्यों के खिलाफ एक अवमानना याचिका दायर की गई, क्योंकि इनके द्वारा बनाए गए कानून “प्रकाश सिंह मामले में न्यायालय द्वारा की गई व्याख्या की संवैधानिक गारंटी के अनुसार राज्य द्वारा संतुष्ट करने के लिये बुनियादी न्यूनतम आवश्यकताओं का उल्लंघन करते हैं।”
पुलिस सुधारों के संदर्भ में अपने निर्देशों का पालन न करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने अकथनीय कारणों से किसी भी राज्य को अवमानना नोटिस जारी नहीं किया है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 252 संसद को दो या दो से अधिक राज्यों को परस्पर सहमति से सामान्य कानून बनाने की शक्ति देता है और यह बताता है कि ऐसा अधिनियम सहमति देने वाले राज्यों तथा किसी भी अन्य राज्यों पर लागू होगा।
सदन या, जहाँ दो सदन हैं, उस राज्य के विधानमंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पारित प्रस्ताव के माध्यम से इस अधिनियम को अपनाया जाता है। One Nation One Police
केंद्र सरकार और One Nation One Police
केंद्र सरकार कम-से-कम केंद्रशासित प्रदेशों के लिये कानून बनाकर उन राज्यों पर उस कानून को पारित करने का दबाब बना सकती थी, जहाँ उसके दल की सरकार सत्ता में थी। इस प्रकार, 10 से 12 राज्यों में कुछ एकरूपता हासिल की जा सकती थी।
दुर्भाग्य से, न तो केंद्रीय नेतृत्व और न ही राज्य के क्षेत्रीय दलों ने इस तरह की कोई मंशा प्रदर्शित की और न ही आवश्यक दूरदृष्टि दिखाई।One Nation One Police
क्या होगा One Nation One Police का भविष्य?
सबसे अच्छा विकल्प यह होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें सहकारी संघवाद की भावना से एक-दूसरे के क्षेत्र का सम्मान करें। यदि ऐसा नहीं होता है, तो शायद संविधान की सातवीं अनुसूची में शक्तियों के वितरण पर नए सिरे से विचार करना आवश्यक होगा।
देश में प्रत्येक बड़ी घटना के बाद पुलिस सुधारों के लिये आयोग और समितियाँ गठित की जाती हैं, परंतु इन आयोग और समितियों की अनुशंसाएँ अभिलेखागार तक ही सीमित रहती हैं।
हालाँकि, कुछ स्वंतत्र और निष्पक्ष विचार रखने वाले व्यक्ति या संस्थाओं द्वारा समय-समय पर पुलिस सुधार की मांग विभिन्न मीडिया माध्यमों के ज़रिये उठाई जाती है।One Nation One Police
अतः पुलिस व्यवस्था के संदर्भ में पूरे देश के लिये केंद्र सरकार को एक ही पुलिस अधिनियम लेकर आना चाहिये, जिससे पुलिस व्यवस्था में एकरूपता स्थापित की जा सके।
इसके अतिरिक्त पुलिस सुधारों के साथ-साथ आपराधिक न्याय प्रणाली में भी सुधार की आवश्यकता है। इस संदर्भ में मेनन और मलीमठ समितियों की सिफारिशों को लागू किया जा सकता है। कुछ प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं:
- दोषियों के दबाव से मुकर जाने वाले पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए एक कोष का निर्माण।
- देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अलग प्राधिकरण की स्थापना।
- संपूर्ण आपराधिक प्रक्रिया प्रणाली का पूर्ण सुधार।One Nation One Police
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