127th Constitution Amendment Bill : The Journey of OBC Reservation in India

OBC Reservation Bill – इन दिनों भारतीय लोकसभा पेगासस, कोरोना, किसान आदि पर चर्चा की मांग पर चल रहे हंगामें को लेकर सुर्खियों में हैं। लेकिन 9 अगस्त दिन सोमवार को यह हंगामा कुछ देर के लिए थम गया। जिससे चर्चा ने शुरू रूप ले लिया। चर्चा का विषय था ओबीसी आरक्षण। जातिगत मुद्दों को लेकर संसद के प्रत्येक दल ने समान एकजुटता का परिचय दिया।
भाजपा के सीनियर नेता तथा हाल ही के फेरबदल में सामाजिक न्याय एंव अधिकारिता मंत्रालय का जिम्मा प्राप्त करने वाले मध्यप्रदेश से सासंद डॉ. वीरेन्द्र कुमार खटीक ने सोमवार को लोकसभा में ओबीसी आरक्षण संबंधी परिवर्तन के 127वां संविधान संशोधन (OBC Reservation Bill) विधेयक संसद में रखा।
जानिए क्या है OBC आरक्षण से जुड़ा मंडल आयोग?
भारत में ओबीसी आरक्षण की शुरूआत 1979 में गठित मंडल आयोग के गठन से मानी जाती है। जिसे पिछड़े वर्गों को समानता प्रदान करने के तथा पिछड़ेपन के निर्धारकों को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया। इस आयोग ने 1980 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की (OBC Reservation Bill in India ) सिफारिश की। 1990 में वी पी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया। इसके साथ ही ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई।
क्यों महत्वपूर्ण है इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ का मामला?
वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के मामले में ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी गई। जिसमें कहा गया कि सरकारें इस आरक्षण का प्रयोग राजनीतिक हितों को साधने के लिए कर सकतीं हैं।
इस पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए पिछड़े वर्गो को जातिगत आधार पर आरक्षण देने की बजाय सामाजिक और आर्थिक आधार पर आरक्षण का लाभ देने की बात कही। इन आधारों के निर्धारण तथा इन वर्गो के हित संरक्षण के लिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने की बात भी कही।
1993 में भारत सरकार ने संसद के माध्यम से राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया। जिसे वर्ष 2018 तक संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं था। इसे वर्ष 2017 में संविधान के 102वें संशोधन के द्वारा संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। साथ ही इस संशोधन के माध्यम से ओबीसी आरक्षण के संबंध कई नए प्रावधान जोड़े गये।
127वें संशोधन विधेयक की पृष्ठभूमि, 102वां संशोधन
(OBC Reservation Bill in India )
102वें संविधान संशोधन के माध्यम से मुख्य तीन बातों का उल्लेख किया गया। जिनमें अनुच्छेद 338(B), 342(A), 366 (26C) को जोड़ा गया।
338(B) को अंतर्गत 9 धाराओं को स्थान दिया गया। जिसमें राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की बात शामिल हैं। इसके अलावा इसके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, और तीन सदस्यों के संबंध होने की बात भी कही गई।
अनुच्छेद 342(A) के अंतर्गत दो धाराओं को जोड़ा गया। जिसमें धारा 1 कहती है कि संघ सरकार की नौकरी आदि ओबीसी आरक्षण की गणना राष्ट्रपति द्वारा घोषित ओबीसी जातियों की सूची के आधार पर किया जाएगा। जबकि धारा 2 कहती है कि राजमय के ओबीसी जातियों का गठन राज्यपाल की सलाह से राष्ट्रपति करेंगे।
अनुच्छेद 366 में उपबंध (26C) के माध्यम से संविधान में ओबीसी अथवा पिछड़ो को परिभाषित किया गया।
इन संशोधनों के कुछ समय बाद ही कई विपक्षों दल इन नवीन प्रावधानों के खिलाफ खड़े हो गए।
क्या राज्यों के अधिकारों का हनन करता है 102वां संशोधन?
उनका मानना था कि अनुच्छेद 342(A) की धारा 2 के अंतर्गत जो राज्यपाल की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा ओबीसी वर्गों के निर्धारण की बात कही गई है, वह राज्यों को दिए गए ओबीसी नियम बनाने के अधिकार में हस्तक्षेप करती है। दलों को डर था कि राज्यपाल और राष्ट्रपति दोनों ही केन्द्र सरकार के अधीन कार्य करते हैं। ऐसे वह राज्य की नीतियों में बाधक सिद्ध हो सकते हैं।
हालाकिं इसके बाद संसद में तात्कालीन सामाजिक न्याय एंव अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने संसद में स्पष्टीकरण दिया कि विपक्ष जिस प्रकार की आंशकाएं जता रहा है, उन सब का उक्त कानून कोई भी आधार नहीं रखता हैं। यह कानून राज्यों के किसी भी अधिकार को क्षरित नहीं करेगा। यह दोनों राज्यों के अधिकारों को सुरक्षित करेगा। इसके बाद मुद्दा चर्चा से बाहर रहा।
मराठा आरक्षण और ओबीसी(obc) विवाद?
ओबीसी आरक्षण का मुद्दे ने एक बार फिर जोर पकड़ा, जब महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन की मांग तेज होने लगी। महाराष्ट्र में क्षेत्रीयता के आधार पर मराठा समुदाय ने विशेष आरक्षण की मांग उठाई। जिस पर महाराष्ट्र सरकार ने मोहर लगा दी। और आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत के आगे बढ़ाकर मराठा वर्ग को आरक्षण देने की बात कहीं।
50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को असंवैधानिक ठहराते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में इसके विरूद्ध याचिका दर्ज की गई। इस मामले मे निर्णय सुनाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस प्रावधान को सही ठहराया।
लक्ष्मीराव पाटिल बनाम महाराष्ट्र मुख्यमंत्री 2021
जिसके बाद यही मामला जयश्री लक्ष्मीराव पाटिल बनाम महाराष्ट्र मुख्यमंत्री 2021 के नाम से सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए, 50 प्रतिशत से अधिक की आरक्षण व्यवस्था को असंवैधानिक करार दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 102वें संविधान की व्याख्या करते हुए कहा कि किसी वर्ग को ओबीसी का दर्जा देने का काम राष्ट्रपति की अधिसूचना के द्वारा ही संभव हो सकेगा।
इस फैसले के बाद एक बार फिर से ओबीसी आरक्षण को लेकर राज्यों के अधिकारों के बारे में सवाल उठने लगे। इसी सिलसिले में केन्द्र सरकार ने जयश्री लक्ष्मीराव पाटिल बनाम महाराष्ट्र मुख्यमंत्री 2021 मामले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 1 जुलाई 2021 को खारिज कर दिया। राज्यों के ओबीसी मामले पर चलते असमंजस को दूर करने के औचित्य से केन्द्र सरकार संसद में 127वां संसोधन (OBC Reservation Bill) विधेयक लायी है।
127वें संशोधन विधेयक से संविधान में कोई नया अनुच्छेद नहीं जोड़ा जाएगा। बल्कि 102वें संविधान संशोधन के द्वारा जोड़े गए प्रावधानों में उत्पन्न हो रही विवाद की स्थिति को सुलझाने के लिए कुछ स्पष्टीकरणों को जोड़ा जाएगा। जो कि निम्न हैं।
127वें संशोधन (OBC Reservation Bill)से होंगे ये बदलाव?
102वें संशोधन के माध्यम से 338(B) में कुल 9 धाराओं को जोड़ा गया था। जिसमें वर्तमान धारा 9 कहती है कि केन्द्र और राज्य सरकारों को पिछड़ा वर्गों संबंध बन रही नीतियों के विषय में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श करना होगा।
338(B) की धारा (9) में परिवर्तन करते हुए 127वें संशोधन (OBC Reservation Bill) के द्वारा यह जोड़ा जाना है कि यह धारा (9) सविंधान के अनुच्छेद की धारा तीन के पर लागू नहीं होगी।
गौरतलब है कि अनुच्छेद 342(A) में मात्र दो धाराएं वर्तमान में मौजूद हैं। 127वें संशोधन (OBC Reservation Bill) विधेयक के प्रभावी होने पर अनुच्छेद 342(A) में तीसरी धारा जोड़ी जाएगी। तथा धारा 1 व धारा 2 के बाद स्पष्टीकरण जोड़ा जाएगा। जो उल्लेख करेगा कि ये धाराएं केन्द्र के संबंध में लागू होंगी ना कि राज्य के संदर्भ में।
वहीं धारा (3) इस बात की पुष्टि करेगी कि राज्यों द्वारा ओबीसी सूची का केन्द्र से कोई ताल्लुक नहीं होगा।
102वे संविधान संशोधन के तीसरे प्रावधान यानि 366 (26C) वर्णित परिभाषा में संशोधन करके जोड़ा जाएगा कि पिछड़े वर्गों के आरक्षण की व्यवस्था जाति या वर्ग आधार पर किया जाएगा। जिन वर्गों का उल्लेख अनुच्छेद 342(A) में मिलता है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया जाएगा कि पिछड़े वर्गों का निर्धारण केन्द्र और राज्य स्तर पर अलग अलग होगा, जिनका आपस में कोई संबंध नहीं होगा।
कुल मिलाकर यदि बात की जाए तो सरकार 127वें (OBC Reservation Bill) संविधान संशोधन विधेयक के माध्यम से, पनप रही असमंजस और अपनी गलतियों को सुधारना चाहती है। क्योंकि मराठा आरक्षण निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने 102वें संशोधन की जो व्याख्या की है। उसमें केन्द्र को कई आपत्तियां नजर आ रहीं हैं।
आशा करता हु (OBC Reservation Bill) पे दी गयी जानकारी आपको पसंद आयी होगी। OBC Reservation Bill पे अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।
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