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New Cold War V/s Old Cold War

Posted on July 26, 2021August 11, 2021 by affairssworld

New Cold War V/s Old Cold War 

पिछले शीत युद्ध से कैसे अलग है नये शीत युद्ध का दौर? New Cold War V/s Old Cold War

पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि कुछ देशों के बीच तनाव इस हद तक बढ़ चुका है कि कई बार युद्ध Situation of War जैसी स्थिति भी बन चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में चीन एक महाशक्ति के रूप में उभरा है। वह अधिनायकवाद के सिद्धांत पर आगे बढ़ रहा है तथा हर संभव तरीके से अमेरिका को टक्कर देने की कोशिश में लगा हुआ है। वहीं चीन के बढ़ते वर्चस्व से अमेरिका की जड़ें भी कुछ हद तक हिल गई हैं । वह  तकनीकों से लेकर व्यापारिक प्रतिबंधों के माध्यम से चीन के काउंटर की जुगत लगा रहा है। ऐसी ही आपसी सुगबुगाहट को कूटनीति के जानकार शीत युद्ध का नाम देते हैं।

कुछ जानकर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव (Sino-American tensions) को द्वितीय शीत युद्ध या Second Cold War का नाम भी देते हैं।

new cold war
old cold war vs new cold war

साथ ही यह भी कहना है कि चीन सोवियत संघ (USSR) का उन्नत रूप (Upgraded Version) है।
क्योंकि सोवियत संघ भले ही सामरिक रूप से सम्पन्न था परन्तु, जैसे सोवियत संघ ने समाजवादी अर्थव्यवस्था (SOCIALIST ECONOMY) का मॉडल अपनाय और अमेरिका के पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy) के आगे घुटने टेक दिए और टूट कर बिखर गया, जिसके उत्तराधिकारी (Successor) के रूप में रूस सामने आया।
परन्तु चीन ने उस गलती को नहीं दोहराया, सामरिक रुप से खुद को सबल बनाया ही और साथ ही खुद को मिश्रित और ताकतवर अर्थव्यवस्था के रूप में खड़ा किया। चीन की मौजूदा अर्थव्यवस्था को  ‘चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद’ (Socialist Economy with Chinese Characteristics) की अर्थव्यवस्था या ‘जिनपिंग थॉट’ (Jinping Thought ) कहा जाता है।

शीत युद्ध क्या है? What is Cold war?

शीत युद्ध, वह जंग है जो वास्तविक रूप जमीन पर न होकर धमनी और शिराओं में लड़ी जाती है। यह मस्तिष्क में पल रही मानसिकताओं का युद्ध होता है। जब कोई देश अपने प्रतिद्वंद्वी पर सीधे तौर पर कारवाई ना करके उन बिंदुओं को परिवर्तित करता है, जिससे संबंधित देश पर दबाव बने।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों के बीच भू-राजनीतिक तनाव (Geopolitical Tension) की अवधि 1945-1991 को शीत युद्ध का दौर cold war कहा जाता है।

कैसे हुई शीत युद्ध की शुरुआत?

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका, दो पक्षों के रूप में विश्व बंट चुका था। इसके अतिरिक्त एक और पक्ष था जिसे गुटनिरपेक्ष संघ कहा गया। इसमें भारत सहित कई अन्य देश शामिल थे।

यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वाले संयुक्त राज्य अमेरिका और साम्यवादी व्यवस्था वाले सोवियत संघ के बीच विचारधारा का युद्ध था। 

शीत युद्ध शब्द का पहली बार इस्तेमाल अंग्रेज़ी लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने 1945 में प्रकाशित अपने एक लेख में किया था।

इस शीत युद्ध का दौर विभिन्न विचारधाराओं को थोपने का दौर लगता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई औपनिवेशिक ताकतों से स्वतंत्र हो चुके थे। इन दोनों देशों में होड़ थी कि कैसे अधिक से अधिक देशों को अपनी ओर मिलाया जाए। इसके के लिए इन गुटों  ने आर्थिक लालच के साथ साथ डराने का भी काम किया।

1991 में तानाशाही के आरोपों तथा सैन्य गतिरोधों के चलते सोवियत संघ का विघटन हुआ, इसके साथ ही शीत युद्ध के दौर की समाप्ति हुई।

क्या है शीत युद्ध 2.0?

अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव को कोरोना COVID-19 महामारी जो कि चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ (WHO) के फैलाव ने अधिक तेज कर दिया है। जहां एक ओर बहुत से देश चीन को ही महामारी के प्रसार का कारण मान रहे हैं‌, तो वहीं कुछ देश चीन के साथ खड़े हैं।

अमेरिका कई भू राजनीतिक संगठनों का निर्माण के माध्यम से चीन की घेराबंदी में लगा हुआ है। वहीं चीन “चेक डिप्लोमेसी” के माध्यम से देशों को ऋण देकर अपने पक्ष में मिलाने की फिराक में है।

चीन अमेरिका पर लगातार तानाशाही और व्यापारिक प्रतिबंधों की आड़ में अपने हित साधने का आरोप लगाता रहा है। वहीं अमेरिका चीन को हांगकांग नागरिकों और उइगर मुसलमानों के मानवाधिकार हनन तथा कोरोना वायरस के आरोपों पर घेरता है।

Cold War 2.0 में क्या हो भारत की नीति?

पिछले शीत युद्ध(cold war) के दौर में भारत किसी भी पक्ष में ना रहते हुए गुटनिरपेक्ष समूह का हिस्सा था जो मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता था। । New Cold War V/s Old Cold War

जबकि इस बार परिस्थितियां एक दम अलग हैं। भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में घनिष्ठता है‌। वहीं चीन और भारत के बीच लगातार तनाव की स्थिति देखी जा सकती है। ऐसे में भारत का झुकाव अमेरिका की ओर ज्यादा है। भारत को अपनी विदेश नीति और गुटनिरपेक्षता को ध्यान में रखकर ऐसी नीति का पालन करना होगा जो संतुलन और समन्वय बनाने में सफल रहे।

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