MIRA BAI CHANU – A NAME WHO TAKE PLACE IN ALL HEARTS IN INDIA
ओलंपिक जैसे मुकाबले में अगर आप दूसरे खिलाड़ियों से पिछड़ जाए तो एक बात है, लेकिन अगर आप खेल पूरा ही ना कर पाए तो ये किसी भी खिलाड़ी के मनोबल तोड़ने वाली घटना हो सकती है। 2016 के भारत की वेटलिफ्टर मीराबाई चानू (Mira bai chanu)के लिए ऐसा ही हुआ था. ओलंपिक में अपने वर्ग में मीरा सिर्फ़ दूसरी खिलाड़ी थी जिनके नाम के आगे लिखा था “डिड नोट फिनिश”
जो भार मीरा आसानी से उठा लिया करती थी, उस दिन ओलिंपिक में जैसा उनके हाथ बर्फ की तरह जम गये थे। उस समय भारत में रात थी, इसलिए बहुत ही कम लोगों ने ये नज़ारा देखा। सुबह उठ के भारत के खेल प्रेमियों ने जब ख़बरे पढ़ी तो मीराबाई (Mira bai chanu) रातो रात भारतीय प्रशंसकों की नज़र मैं विलेन बन गयी।
नौबत यहा तक आगई की वो 2016 में ड्रिप्रेशन में चली गयी और उन्हे हर हफ्ते मनोविज्ञानिक के सेशन लेने पड़े। इस असफलता के बाद तो मीरा ने एक बार को खेल को अलविदा कहने का मान बना लिया था , लेकिन कहते है ना ” मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” अपने लोगो के प्रोत्साहन और खुद के दृढ़ निश्चय से उन्होंने हार नही मानी और पिछले साल जबरदस्त वापसी की।

आप सब जानते है की उनका ऐसा करना भारत के लिए कितना गौरवपूर्ण साबित हुआ । उन्होने इतिहास के पन्नो में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा लिया है और हो सकता है
भारत की ये होनहार खिलाड़ी अपनी किस्मत अथवा मेहनत से अपना सिल्वर मेडेल गोल्ड में तब्दील कर ले क्यूँकी टोक्यो से ख़बरे आ रही है की चाइना की वेटलिफ्टर डोप टेस्ट परीक्षण किया गया है और चाइनीज इतिहास को देखते हुए ये संभव है की उनके वेटलिफ्टर ने चालाकी के साथ बैन दवाए ली होंगी। अगर ऐसा होता है तो भारत के इतिहास में वो ये करने के साथ स्वर्ण अक्चरों मैं दर्ज हो जाएगी।
मीराबाई चानू का जीवन परिचय। (Life story of Mira bai chanu)
भारत का पूर्व हिस्सा काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि की इस हिस्से में अन्य देशो की सीमा लगी है साथ ही इस प्रदेश के बहुत ही छोटे छोटे राज्य है जो की केवल इसी प्रदेश में देखने को मिलते है क्योंकि की देश के सभी हिस्सों में सभी राज्य बड़े बड़े है।
इसी पूर्व हिस्से में स्थित एक छोटासा लेकिन सबसे खास राज्य भी है जिसका नाम मणिपुर – Manipur है। इस राज्य को भारत का स्विट्ज़रलैंड भी कहते है। इस राज्य की भाषा, कला, संस्कृति, लोग, अन्य राज्यों से बिलकुल अलग है।
मीराबाई चानू का जन्म मणिपुर के इम्फाल में हुआ. यह मणिपुर के पूर्व में स्थित है. इनकी जन्म तारीख 8 अगस्त 1994 है. इस हिसाब से इनकी अब तक उम्र मात्र 23 साल है. इनकी शिक्षा भी यही से शुरू हुई .
मीराबाई चानू परिवार (family of Mira bai chanu)
मीराबाई चानू एक मध्यम परिवार से ताल्लुक रखती हैं इनकी माता जी एक ग्रहणी होने के साथ-साथ एक दुकानदार है जिनका नाम साइकोहं ऊँगबी तोम्बी लीमा है। इनके पिता पीडब्ल्यूडी डिपार्टमेंट में काम करते हैं जिनका नाम साइकोहं कृति मैतेई है।. मीराबाई के पांच भाई-बहन हैं।
लकड़ी का गठ्ठर उठाने के साथ पहचानी ताकत
मीराबाई चानू को महज 12 साल की उम्र में अपनी ताकत का अहसास हो गया था. चूल्हा जलाने के लिए अक्सर परिवार को लकड़ियां चुनकर लाना पड़ता था. मीराबाई बेहद आसानी से भारी-भारी लकड़ी के गठ्ठर को कंधे पर उठाकर ले आती थी जबकि उसके भाई को इसमें कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी.
कपड़े गंदे न हों, इसलिए तीरंदाज बनना चाहती थी
भारतीय वेटलिफ्टर मीराबाई ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके सभी भाई-बहन फुटबॉल खेलना पसंद करते थे. मगर उन्हें कपड़े गंदे करना पसंद नहीं था, इसलिए वह कोई ऐसा खेल चुनना चाहती थी, जिसमें कपड़े गंदे न हों. इसलिए उन्होंने तीरंदाज बनने का फैसला किया. साल 2008 में वह इसके लिए ट्रायल देने भी गईं, लेकिन उस दिन उन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं मिली.
किताब के एक चैप्टर ने बदली किस्मत
मीराबाई चानू जब आठवीं क्लास में थीं, तब किताब के एक चैप्टर ने उनकी किस्मत बदल दी. तीरंदाज के तौर पर ट्रेनिंग न मिलने के बाद जब वह स्कूल लौटी, तो उन्होंने किताब में भारत की महान वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी की सफलता की कहानी पढ़ी. बस यहीं से उनका लक्ष्य बदल गया और उन्होंने वेटलिफ्टर बनने का फैसला किया. बाद में पूर्व इंटरनेशनल वेटलिफ्टर अनीता चानू उनकी कोच बनीं.
साइखोम मीराबाई चानू कोच (Mirabai Chanu Coach)
वेट लिफ्टिंग में मीरा की कोच कुंजरानी देवी है जो खुद भी वेट लिफ्टिंग में एक भारतीय खिलाड़ी है. कुंजरानी भी इम्फाल मणिपुर की ही रहने वाली है.
पूरा हिंदुस्तान कर रहा था दुआ
उस पल शायद अकेले मीराबाई चानू (Mira bai chanu) नहीं रोई थीं बल्कि रोया था पूरा मणिपुर, पूरा नॉर्थ ईस्ट और पूरा भारत। जो ओलिंपिक को नहीं भी जानता या खेलों से उसका कोई खास लगाव नहीं होता वो भी टेलीविजन स्क्रीन से सटकर मैच को देखता है। मीराबाई चानू जब वेट लिफ्ट कर रहीं थीं उस वक्त लोगों के हाथ जुड़े हुए थे और चानू की जीत के लिए दुआएं हो रहीं थीं। हर धर्म, हर मजहब के लोगों की यही दुआ थी बस चानू की ये लिफ्ट हो जाए।
आसान नहीं रहा यहां तक का सफर
बचपन में जलाने वाली लकड़ी का गट्ठर उठाने से लेकर अंतरराष्ट्रीय पोडियम तक पहुंचने का वेटलिफ्टर साईखोम मीराबाई चानू का सफर बेहद शानदार रहा है। यह उनके संघर्ष और लगन की दास्तां बयां करता है। स्कॉटलैंड में हुए 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोग्राम भार वर्ग में रजत पदक जीतकर मीराबाई चानू ने 20 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। 2016 का वो दिन, जब मीराबाई चानू ने रियो ओलिंपिक में 6 में 5 प्रयास इनवैलिड करार दिया गया। उसके बाद उनकी आंखों में आंसू थे वो आगाज था कि मुझे कमजोर मत समझना, अगले ओलिंपिक में इस पोडियम में मेरा ही डंका बजेगा…
मीराबाई चानू का रेकॉर्ड
मीराबाई ने 2017 में वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप (48 किलो) की चैंपियन बनी थीं। उन्होंने इस साल अप्रैल में 86 किलो स्नैच और वर्ल्ड रेकॉर्ड 119 किलो वजन उठाकर खिताब जीता था। उन्होंने कुल 205 किलो वजन उठाकर ब्रॉन्ज मेडल जीता था। चानू का 2016 रियो ओलिंपिक निराशाजनक रहा था। लेकिन उसके बाद उन्होंने अपने खेल में लगातार सुधार किया। उन्होंने 2017 में वर्ल्ड चैंपियनशिप और 2018 में कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल जीता था।

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काफी सुधार किया
26 वर्षीय चानू बीते ओलिंपिक से अब तक अपने खेल में काफी सुधार किया है। उन्होंने अपनी तकनीक में काफी मेहनत की है। चानू 1 मई को स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग की ट्रेनिंग करने के लिए अमेरिका चली गई थी। उन्होंने अपने कोच डॉक्टर आरोन हार्सचिंग के साथ ट्रेनिंग की। उन्होंने वहां अपने कंधे की चोट का इलाज भी करवाया। मीराबाई अमेरिका से सीधा जापान ओलिंपिक के लिए पहुंचीं।