Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack
Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack 6 अगस्त 1945 हिरोशिमा की जनता के लिए एक आम दिनों की तरह था। उन दिनों अमेरिका और जापान के बीच तनाव अपने चरम पर था। युद्ध और मंदी के साये के बीच जापानियों को दैनिक जरूरतों की चीजों जैसे दूध, अंडे आदि के लिए भी जूझना पड़ रहा था।
ईंधन के दाम आम आदमी के पहुंच से बाहर हो चुके थे। सड़को से निजी वाहन नदारद थे। हर ओर सेना के वाहन और सैनिकों के बीच सुगबुगाहट मौजूद थी। और रास्तों पर चलती भीड़ थी। कुछ लोग सुबह सुबह अपने कार्य स्थलों की ओर निकल रहे थे तो कुछ लोग तैयारी हो रहे थे दिनभर के सफर के लिए।
76 years ago when fire rained on the earth Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack
सुबह साथ बजे करीब जपानी रडारों ने दक्षिण से आते हुए कुछ हवाई वाहनों के होने के संकेत प्राप्त किए। कुछ देर बाद पुष्टि हो गई कि विमान अमेरिका की ओर से भेजे गए हैं। जापान में तमाम रेडियो गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गई। खतरे की घंटियां बज उठी।
तब जापान की हालत इतनी खस्ता थी कि वह पेट्रोल की कमी के चलते एक अदद विमान भी जबावी कारवाई के लिए नहीं भेज सका।
6 अगस्त को हिरोशिमा पर बरसी आफत Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack
इस अमेरिकी विमान को स्थिति के आकलन के लिए भेजा गया। अपने पीछे आते विमानों के लिए इसने संदेश भेजा कि रास्ता साफ है। एक घंटा बीतते बीतते जापान में खतरे की चेतावनी को समाप्त कर दिया गया। रेडियो गतिविधियां पहले की तरह सामान्य होने लगी।
आठ बजकर अभी दसवां मिनट भी नहीं गुजरा था कि अमेरिकी वायुसेना के पॉल टिबेट्स ने अपने बी-29 विमान एनोला गे के संदेशवाहक पर अन्य विमानों के चालकों को संदेश भेजा कि अपने जरूरी सुरक्षा साधनों के साथ तैयार रहें। उन्हें कारवाई पूरी होने तक पहनकर रखने की चेतावनी दी गई।
Little Boy ने मचाई तबाही Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack
इसके कुछ ही मिनटों के बाद एनोला गे के बॉम्बार्डियर मेजर टॉमस फेरेबी को हेडफोन पर कर्नल पॉल टिबेट्स ने आदेश दिया। कि अब आगे की जिम्मेदारी तुम्हारी। संदेशवाहक पर चालकों को फिर सतर्क किया गया।
टॉमस फेरबी अब अपना लक्ष्य अओई ब्रिज नजर आ रहा था। अगले दो मिनटों में एनोला गे विमान से लिटिल बॉय नामक परमाणु बम लक्ष्य की तरफ फेंका गया। अगले एक मिनट के भीतर ही लिटिल बॉय अपने लक्ष्य अओई ब्रिज से कुछ मीटर की दूरी पर जा गिरा।
अब विमान जिस जगह उड़ रहा था उसके ठीक पीछे की जमीन पर आगे का बहुत बड़ा आग का गोला उभर आया था। जो तेजी से फैलता जा रहा था। यह एक आंधी की तरह फैल रही थी। अपने सामने आनी वाली हर एक चीज को अपने में मिला कर राख कर रही थी। धमाका इतनी तेज था कि मीलों दूर तक की इमारतों के कांच के शीशे टूट चुके थे। मजबूत खड़ी कांक्रीट की इमारतों के खंडहरों को छोड़कर हर ओर केवल आग और आग से लिपटे मृत शव मौजूद थे।
हमला इतना भयावह था कि हिरोशिमा की लगभग ढाई लाख अबादी का एक तिहाई हिस्सा मौत की नींद सो चुका था। विमान में मौजूद एक सैन्य अधिकारी आगे चलकर अपनी किताब में लिखा कि हमें घटना से पहले अंदाजा भी नहीं था कि हम कितनी बड़ी मानवीय क्षति को अंजाम देने जा रहे हैं। आग के गोलों की चकाचौंध को देखकर विमान में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति सिहर उठा था।
अमेरिकी हवाई विमान अब आवासीय क्षेत्रों के ऊपर से उड़कर हिरोशिमा की सीमाओं को पार करते हुए निकल चुके थे। जो अपने पीछे छोड़ गए थे बेइंतहा दर्द से भरी मदद को पुकारती चींखें और अधजले और घायल लोगों के कराहने की आवाजें।
इसके बाद तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ने रेडियो संवाद के माध्यम से दुनिया को इस घटना के बारे में बताया। उन्होनें कहा कि हमने अब तक शक्तिशाली हथियारों से हजारों गुना तबाही की क्षमता रखने वाले परमाणु हथियार का प्रयोग जापान पर कर दिया है। जिसका परिणाम बेहद विनाश और डर को पैदा करने वाला रहा। ऐसे आक्रामक हथियार हमारी सेना को और मजबूती देगें।

जानिए परमाणु हमले से कैसे बचा कोकुरा शहर kokura city ? Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack
जापान, अभी कपास के तिनकों से हिरोशिमा के घावों से खून के छींटों को पोंछ तक नहीं पाया था, कि इसके ठीक तीन दिन बाद ही अमेरिका का एक और बमवर्षक विमान जापान के शहर कोकुरा में जा पहुंचा। यह विमान भी अपने साथ वही साजो-सामान लिए था जिसके जख्म हिरोशिमा झेल चुका था।
यह विमान कोकुरा के आसमान से अपने लक्ष्य को खोज रहा था। घटना को अंजाम देने से ठीक पहले ही रणनीति में कुछ फेरबदल हुआ। विमान को जल्द ही कोकुरा छोड़ देने के आदेश मिले। स्थान परिवर्तन के पीछे यह तर्क था कि अमेरिका जापान के ऐसे किसी शहर को निशाना नहीं बनाना चाहता था जो सांस्कृतिक या सैन्य महत्व का हो। कोकुरा में जापानी सेना का हथियार और बारुद के ठिकाने थे।
9 अगस्त को नागासाकी पर निशाना Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack
कोकुरा शहर के ऊपर से जैसे तबाही छूकर निकल गई थी। विमान अब अपने नये ठिकानों की ओर बढ़ चले थे।
9 अगस्त 1945 सूरज अभी पूरी तरह सर पर चढ़ा भी नहीं था। विनाशकारी विमानों को अपना नया लक्ष्य नागासाकी मिल चुका था।
जैसे ही तय स्थान पर विमान पहुंचने लगा बम गिराने के स्वचालित सिस्टम को चालू कर दिया गया। अगले ही पल हजारों किलोग्राम का भार लिए परमाणु बम फैटमैन तेजी से धरातल की ओर बढ़ चला। यह परमाणु गोला जमीन से 100 फीट ऊपर जा फटा।
सूरज की तरह फटा Fatman Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack
नागासाकी अब एक और हिरोशिमा के रूप में आकार लेने लगा। स्थानीय लोग परमाणु से परिचित नहीं थे उन्हें लगा जैसे सूरज फट गया है। बम गिरने के एक किमी के दायरे में मौजूद सभी चीजें या तो कार्बन में बदल गयीं या भाप बनकर वातावरण में मिल गयीं। प्रत्यक्षदर्शियों ने बाद में बताया कि चारों तबाही थी। लोगों के हाथ पैर गलने लगे थे। हालात नरक जैसे हो चले थे।
परमाणु के इन दो हमलों से द्वितीय विश्व युद्ध अंतिम मुहाने पर जा चुका था। लेकिन यह छोड़ गए गई थी चिंता की एक बड़ी लकीर मानवता के माथे पर। तब से लेकर अब तक जब भी परमाणु की चर्चाएं तेज होती है। कहीं न कहीं मानवता का वर्ग फिर से सहम उठता है।
आज भी जिंदा है जख्म..Hiroshima and Nagasaki Atomic Attack
परमाणु बम गिरने का असर लंबे समय तक और कई अनुवांशिकी पीढ़ियों में देखने को मिला। हजारों लोगों ने इस घटना में अपने परिवार खो दिए। जो बच गए वो किसी विकृति या अवसाद के शिकार हुए। कुल मिलाकर जो इस घटना के संपर्क में एक क्षण भी रहे वह लंबे समय तक घटना से उबर नहीं सके।
आज हिरोशिमा और नागासाकी की परमाणु त्रासदी को 76 वर्ष बीत चुके हैं। हिरोशिमा और नागासाकी में आज मृतकों के लिए कई स्मारक बनाए गए हैं। जहां तबाही के निशान आज भी जीवंत है। वहीं जापान इस घटना से भौतिक रुप से उबर चुका है और प्रगति के पथ पर अग्रसर है। और इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि किसी और को ऐसा रंज ना झेलना पड़े। जबकि अमेरिका आज तक इस घटना की माफी नहीं मांग सकता है।
हिरोशिमा और नागासाकी की पीड़ा को महसूस करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री और बड़े कवि अटल बिहारी वाजपेयी लिखते हैं-
किसी रात को
मेरी नींद अचानक उचट जाती है
आँख खुल जाती है
मैं सोचने लगता हूँ कि
जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का
आविष्कार किया था
वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण
नरसंहार के समाचार सुनकर
रात को कैसे सोए होंगे?
क्या उन्हें एक क्षण के लिए सही
ये अनुभूति नहीं हुई कि
उनके हाथों जो कुछ हुआ
अच्छा नहीं हुआ!
यदि हुई, तो वक़्त उन्हें कटघरे में खड़ा नहीं करेगा
किन्तु यदि नहीं हुई, तो इतिहास उन्हें
कभी माफ़ नहीं करेगा!
INS Vikrant 2021: India’s first MADE IN INDIA Aircraft Carrier
क्या है भूलने का अधिकार /Right to be Forgotten