Biography Of Satish Mishra ‘Achook‘
Biography of Satish Mishra ‘Achook’ अचूक, वह कोशिश जो कभी नाकाम ना रहे। अचूक, सिद्धहस्त और पैनेपन का वह सूचक जो मन में आशा जगाता है कि चाहे हार हो या जीत लेकिन प्रयास अंतिम कसौटी तक किया जाएगा। अचूक होने का गौरव उसी को हासिल हो सकता है जो कई बार चूका हो या चूकने के दौरान उस संघर्ष प्रक्रिया से गुजरा हो, जो ले जाती है अचूक हो जाने के अंतिम शिखर तक।
ऐसे ही अचूकपने को अपने नाम के साथ शब्दों में भी स्थान दिया है पं. सतीश मिश्र ‘अचूक’ ने। पंडित यहां जातिसूचक नहीं बल्कि सम्मान सूचक ही मानिए। वर्ण व्यवस्था में भी पंडित उसे ही माना गया जिसने शब्दों और ज्ञान को एक से अनेक तक पहुंचाया और सचेत किया समाज को हर डगमगाते कदम पर। अपने छंदों से और शब्दों के गठजोड़ से आज की किताबों से दूर जाती पीढ़ी को संबोधित कर रहे हैं सतीश मिश्र जी। मां सरस्वती का आशीर्वाद और पत्रकार होने से शब्द और मुद्दों की समझ तो थी ही। लय और राग बांधने का वरदान इन्हें मिला बांसुरी के शहर पीलीभीत से।
सतीश मिश्र जी का जन्म 9 जुलाई 1974 को पीलीभीत जिले के छोटे से कस्बे पूरनपुर के सपहा गांव में हुआ। पूज्यनीय जियालाल मिश्र जी तथा प्रेमादेवी के आंगन में नन्हें सतीश के कदम पड़े। सपहा गांव छोटा था सो प्रारंभ में ज्ञान के रसास्वादन के लिए पड़ोस के गांवों का रुख करना पड़ा। जब तक इंटर में पहुंचे तब तक तो मिश्र जी पूरनपुर की तमाम गलियां नाप चुके थे। स्नातक के लिए जिला मुख्यालय का सफर तय किया जा चुका था।
गांव से कस्बा, कस्बे से जिले तक की यात्रा के बाद सतीश जी ने राज्यबदर होने का निश्चय किया।
पत्रकारिता का सपना संजोए आ पहुंचे देश का हृदय कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में। जहां आपने प्रवेश लिया एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय, राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में। जहां मास्टर ऑफ जर्नलिज्म की स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की।
पढ़ाई पूरी करने के बाद दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान, दो टूक सांध्य दैनिक जैसे कई प्रतिष्ठित प्रिंट मीडिया समूहों से जुड़े रहे। तथा विभिन्न कमेटियों से जुड़कर मीडिया जगत की सेवा की। वर्तमान में सतीश जी प्रसार भारती (आकाशवाणी/दूरदर्शन) के अंशकालिक संवाददाता के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। कोरोना के दौरान आपका कार्यक्रम ‘चलना है सम्हलना है’ चर्चित रहा।
पत्रकारिता के अतिरिक्त पर्यावरण व प्रकृति संरक्षण की पहलों में भी पंडित जी का दोनों हाथों से सहयोग रहा है। स्थानीय जलदायिनी गोमती नदी के पुनरुत्थान में भी आप अग्रिम पंक्ति में रहे।
अपने बचपन में पड़ोसी गांव जाकर शिक्षा प्राप्त करना और कठिनाईयों को पार कर जाने का मनोबल हर किसी में नहीं इस बात को मिश्र जी से बेहतर कौन जान सकता था इसलिए उन्होंने ने अपने पिता की स्मृति में ग्राम सपहा में एक विद्यालय का भी निर्माण करवाया।
उत्तर प्रदेश की साहित्य उपार्जन भूमि में रहते हुए मिश्र जी की साहित्य सेवा की कसक पूरी ना हो सकी थी। वैसे तो वह समय समय पर अपने कवित्वपन की बूंदें मित्र महफिलों में छिड़कते ही रहते थे लेकिन अतः को भिगो देने वाली बौछारों की अब तक कमी थी।
इस सूखे को समाप्त करते हुए कविवर की 2005 में प्रथम पुस्तक ‘मातेश्वरी गूंगा देवी’ प्रकाशित हुई। इसके बाद साहित्य यात्रा निरंतर गतिशील रही। कई छोटे बड़े प्रकाशन इस बीच चलते रहे। 2019 में दूसरी पुस्तक कलयुग के भगवान आती है। इसके बाद वह दौर आया जब सम्पूर्ण विश्व महामारी से घिर गया। तब मिश्र जी ने अपने लॉकडाउन के अनुभवों को समेटकर तीसरी पुस्तक ‘ लॉकडाउन के शॉक‘ में सजा दिया। इसे पाठकों द्वारा अच्छी सराहना मिली।
पीने की सोची नहीं, छूने से धिक्कार।
एल्कोहल ही कर अब सबका उद्धार।
अब सबका उद्धार हाथ धोता बिन पानी।
सेनिटाइजर नाम सुना अम्मा ना नानी।
अब सब दारुबाज कह रहे कुटिल कमीने।
खूब धो रहें हाथ भले ना आते पीने।
ऐसी ही व्यंग और हास्य मिश्रित शैली में लिखी गई है मिश्र जी की चौथी किताब ‘अचूकवाणी’।इसमें कवि ने राजनीतिक रस्साकसी, राम मंदिर और सामाजिक अभावों पर जमकर निशाना साधा है। साथ ही साथ स्थानीयता के प्रसार को भी स्थान दिया है। इस पुस्तक में 114 रचनाओं का संग्रहण है। यह पुस्तक शब्दांकुर प्रकाशन के माध्यम से प्रकाशित हुई है तथा अमेजन के ऑनलाइन माध्यम से खरीदी जा सकती है।
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इसी प्रकार सतीश मिश्र ‘अचूक’ जी पत्रकारिता और साहित्य सेवा में अनवरत योगदान दे रहे हैं।
सतीश मिश्र ‘अचूक’