Taliban full story in hindi :- अफ़ग़ानिस्तान से आई खबरों के मुताबिक राष्ट्रपति असरफ गानी ने देश छोड़ दिया है, उप राष्ट्रपति की भी देश छोड़ने की ख़बरे है.

Taliban full story in hindi
मौजूदा हालात क्या है ?
Taliban full story in hindi:- तालिबान ने काबुल पे कब्जा कर लिया है. तालिबान ने काबुल को क़ब्ज़े में लेने के बाद शहरो की घेराबंदी शुरू कर दी है.
अफ़ग़ानिस्तान में अफ़रा तफ़री का माहौल है, रोड और हवाई अड्डे भरे हुए है. लोग देश छोड़ के जा रहे है, या कोशिश कर रहे है. काबुल में सारी दुकाने बंद है और सरकारी दफ़्तर खाली कर दिए गये है.
डर और उससे फैली अव्यवस्था के कारण बैंकों के बाहर भारी भीड़ है. लोगों को डर है कि उनकी सारी जीवन भर की कमाई तालिबान लूट ले सकता है. अमेरिका के मुताबिक शहर में तालिबान सेना और तालिबानी लड़ाकों के बीच जंग की संभावना थी पर ऐसा नहीं हुआ.
बल्कि उन्होंने तालिबान को आता देख आत्मसमर्पण कर दिया और उनके हथियारों को भी अपने कब्ज़े में लेकर तालेबान और तेजी से अफगानिस्तान को अपने कब्ज़े में ले रहा है.
Taliban full story तालिबान के पास अब अमेरिका के हथियार है, जो उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान सेना से लिए है और लड़ाके है जो विध्वंश फैला रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में सुपरपॉवर देशो का दखल
शहर में और भी कई सुपरपॉवर देश जो दशकों के उनपर दखल देता आए है, भाग खड़े हुए हैं.
अब उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अपना फायदा देखना शुरू कर दिया है.
चाइना ने तो ऐलान कर दिया है, वो तालिबान को वहां की सरकार मानेगे क्युकि सबसे ज्यादा उसको ही फायदा होगा.
वो अफगानिस्तान के संसाधनों को इस्तेमाल कर सकता है और इसको इस्तेमाल कर के और देशों में अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है.
तालिबान ने क्या कहा ?(Taliban full story in hindi)
तालिबान ने कहा ” उसका इरादा बलपूर्वक शाहर में काबू पाने का नही है, लोगों को अपना समान और देश छोड़ने की कोई ज़रूरत नही है.
तालिबान और अफ़ग़ान सरकार वहा अंतरिम सरकार बनाने का प्रयास कर रही है, लेकिन ये देखने वाली बात होगी की असरफ गनी के वहा से भागने के बाद भी उनका अफ़ग़ानिस्तान में क्या होगा वो कोई सांविधानिक पोज़िशन होल्ड करेगे की नही?
तालिबान ने ये भी कहा है ” एयरपोर्ट और अस्पताल संचालित रहेगे और इमरजेंसी आपूर्ति भी जारी रहेगी, बाहर के लोगो से अपील की गयी है,
अगर वो अपने देश लौटना चाहते है तो लौट सकते है. ” अफग़ानिस्तान से सभी देशो ने अपने राजनयिक और अपने लोगो को वहा से बुलाने का फ़ैसला किया है.
अफ़ग़ानिस्तान में ऐसे हालात की वजह क्या है ?
दो दशकों तक अफगानिस्तान में रहने के बाद अमेरिका वापस अपने मुल्क लौट रहा है. अचम्भे की बात ये है अमेरिका तालिबान से ही समझौता कर के लौट रहा है. जिसको हटाने के लिए इतने साल उसने लड़ाई लड़ी.
अमेरिका दशकों से अपने पैसे अफगानिस्तान को उसके पैर पर खड़ा करने, उसकी आर्मी को इस क़ाबिल बनाने के लिए काम कर रहा है. दरअसल अफगानिस्तान का इतिहास बहुत पुराना है. वो सालों से दुनिया की सुपरपॉवर देशो को अपनी शक्ति दिखाने का गढ रहा है.
अमेरिकन प्रेसिडेंट जो बाइडेन ने अफगानिस्तान में इतने ख़र्च को देखने हुए ये फैसला करने का फैसला किया है. क्युकी दशकों से अमेरिका अपनी सेना तैनात कर के युद्ध से संबंधित हानी झेलता आया है, जिससे उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ है.
राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अमेरिका को ज़िम्मेदार बताया
तालिबान अब अफगानिस्तान में 400 जिलों में से तीन चौथाई पर कब्जा कर चुका है.
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने भी इसे मौजूदा हालात का जिम्मेदार अमेरिका को ही बनाया है.
उन्होंने कहा ” उनने अमेरिकी प्रशासन को अग्राह किया था, उनके लिए गए इस नतीजे के गंभीर परिणाम सामने आयेगे.
उन्हें संसद में कहा वर्तमान स्थिति का कारण ये लोग फैसला जल्दी लिए जाना है.
तालिबान(Taliban full story in hindi) को दूसरे इस्लामी संगठनों से मदद मिल रही है, जो देश के लिए एक ख़तरा बन के उभर सकती है. इसका विश्व की शांति पर भी गंभीर असर पड़ेगा.
अफ़ग़ानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय कार्यवाही के लक्ष्य क्या थे?
तालिबान की सरकार को सत्ता से बेदखल करना जो अमेरिका ने पहले ही दो हफ़्तो में पूरा कर लिया था. 13 नवेंबर 2001 को विदेशी फ़ौजो की मदद से तो तालिबान राजधानी काबुल और दूसरे शहरो के भाग खड़े हुए.
इसका दूसरा हिस्सा था, तालिबान को पूरी तरह ख़त्म करना और देश की संस्थाओ का पुनर्गठन करना.
बराक ओबामा के वक़्त शुरु हुए तीसरे हिस्से का लक्ष्य था. आम जनता की तालिबान से इजाज़त् और लड़ाको को धीरे धीरे समाज में रहने लायक बनाना.
लेकिन आखरी की पॉलिसी को पूरा करना थोड़ा मुस्किल साबित हुआ, अमेरिका के बहुत बड़े एक संपादक ने लिखा है की “अमेरिकी संसद ने 2001 से 2009 के बीच अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारो और पुनर्गठन के लिए महेज 38 अरब डालर दिए जिसमे आधे से ज़्यादा अफ़ग़ान लड़को और उनकी सेना को सीखने में हथियार खरीदने में ख़त्म हो गये,
इस बात पे भी भ्रान्ति रही की शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विकास कार्यो की ज़िम्मेदारी किसकी होगी सेना की या नागरिक सरकार की ?
इसका सामना करने में अमेरिका नाकाम रहा और उसे झुकना पड़ा, अमेरिका पे आरोप भी लगने लगे की अफ़ग़ानिस्तान की सरकारो पर कुप्रबंधन के लिए उन्होने कुछ नही किया और उन्होने मासूमो को भी निशाना बनाया.
ऐसे हालात में पैदा हुए जिससे आम नागरिक मायूस था और तालिबानियो ने इन सब बातो का भी फ़ायदा उठाया, इसी क्रम में अफ़ग़ानिस्तान में भारत दूतावास पर 2008 में हमलो में 50 लोगो की मौत हो गयी थी.
भारत पे तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान में काबिज होने का असर
एक अनुमान के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में भारत अब तक तीन अरब डॉलर का निवेश कर चुका है.
भरात ने अफ़ग़ानिस्तान के संसद भवन का को बनाया है और अफ़ग़ानिस्तान के साथ मिल के एक बड़ा बाँध भी बनाया है. भारत ने शिक्षा और तकनीकी सहायता भी दी है, साथ ही भारत ने उसके प्राकतिक संसाधनो में भी निवेश किया है और प्रोत्साहित भी किया है.
इस तरह के निवेशो का कोई फ़ायदा मिलेगा या नही तालिबान के आने के बाद भारत इस बात को लेकर चिंतित है.Taliban full story in hindi
भारत की सबसे बड़ी चिंता पाकिस्तान के खिलाफ अपनी सामरिक बढ़त के खोने को लेकर है.
अफ़ग़ानिस्तान में भारत के मजबूत रहने का दबाओ हमेशा पाकिस्तान पे रहता है.
भारत के कमजोर होने का मतलब है पाकिस्तान का दबदबा बढ़ना.
तालिबान का उदय(Taliban full story in hindi)
1980 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान दो विचारधाराओं में मानता था, एक थी साम्यवाद और एक थी इस्लाम कम्यूनिस्ट, विचारधारा की वजह से सोवियत यूनियन की अफ़ग़ानिस्तान में काफ़ी दिलचस्पी थी.
वो अफ़ग़ानिस्तान के ज़रिए पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व दिखाना चाहते थे. सोवियत यूनियन की मदद से अफ़गानी नेता तख्ता पलट कर देते थे और अपने हिसाब से देश चलते थे. कम्यूनिस्ट तो लड़ ही रहे थे. इसके साथ इस्लामिक संगठन भी अपने लिए लड़ाई कर रहे थे.
ताकि वो अपना वर्चस्व स्थापित कर सके. पर ऐसा करने से पहले सोवियत यूनियन ने आर्मी के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान में दखल दिया और उसका कारण था, अपना वर्चस्वा जमाना. उसके बाद जो नया शासन आया उसने कुछ अच्छा काम किया.
पर तभी अमेरिका का दखल हुआ अफ़ग़ानिस्तान में, उसने खुद को सोवियत यूनियन से कम देख कर एक चाल चली. उन्होने वहा के मुजाहिद्दीन पर फंडिंग कर के उनको मजबूत बनाया, पाकिस्तान और सऊदी अरब पहले से उनको सपोर्ट कर रहा था.
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कौन थे मुजाहिद्दीन ?
ये पहले तो सिर्फ़ गोरिल्ला फाइटर थे, जो छुप के लड़ाई लड़ते थे.
पर इतने सपोर्ट के बाद इनके पास हथियार होने लगे इसके बाद इस लड़ाई में सोवियत यूनियन पिछड़ गयी और अपनी आर्मी लेकर वहा से चली जाती है.
सिविलवॉर और तालिबान
देश में सिविल वॉर चलती है और फिर 1992 में मुजाहिद्दीन ये लड़ाई जीत जाता है.
लेकिन इसके अंदर भी काई संगठन थे, जिसमें से एक था तालिबान जो बाकी संगठन से ज्यादा ताक़तवर और मुस्किल क़ायदे क़ानून वाला था, मुल्ला उमर इसका नेता हुआ करता था. तालिबान ने अमेरिका के पैसे का इस्तेमाल कर के कब्जा किया और वहा अपने चरमपंथी सोच से सबकुछ बैन कर दिया. Talibaan full story in hindi लोगो से आज़ादी ले ली गयी. उसके बाद अलकायदा अस्तित्व में आता है और वो अमेरिका पे ही हमला कर देता है.
जिसका बदला लेने के लिए अमेरिका अपनी सेना अफ़ग़ानिस्तान में भेजता है और बहुत सारे तालिबानी, आम नागरिको और अलक़ायदा के लोगों को निशाना बन देता है, लेकिन फिर 2001 में अमेरिका तालिबानियो को पीछे कर देता है और नये राष्ट्रपति बनते है.
अफ़ग़ानिस्तान में नया राज आता है, लेकिन अमेरिका कभी भी तालिबान को हटा नही पता है, तालिबान वक़्त वक़्त पे सामने आता रहता है, जिसके बाद आज के वक़्त आप देख सकते है, अफ़ग़ानिस्तान में क्या हाल हो रहा है.
हम आशा करते है की अफ़ग़ानिस्तान में फिर से अमन चैन वापस आएगा और तालिबान जैसे सोच का नाश हो सकेगा.