श्री जगन्नाथ रथयात्रा
यदि आपका बचपन 90 के दशक या उससे पहले गुजरा है तो आपने दूरदर्शन पर जगन्नाथ यात्रा के दृश्य अवश्य ही देखें होंगे। तीन रथ, उसके आस पास हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ और प्रसारण में बारी बारी से आतीं हिन्दी और अंग्रेजी की कमेंट्री की आवाज। यह रोमांचित कर देने वाले दृश्य हैं जून-जुलाई में ओडिशा के तटीय शहर पुरी में होने वाली रथ यात्रा के। यह रथ यात्रा ओडिशा सहित तमाम देश में हिन्दू धर्म मानने वालों की आस्था का प्रतीक है। इस उत्सव को रथ दूज के नाम से जाना जाता है।
लेकिन कोरोना महामारी का असर जहां सभी चीजों पर पड़ा तो यह उत्सव भी उससे अछूता नहीं रहा है। पिछले साल कोरोना के चलते कोर्ट के आदेश के बाद कोविड गाइडलाइंस का तथा शारीरिक दूरी का पालन करते हुए कम से कम जनसमूह की उपस्थिति में इसे संपन्न कराया गया। इस बार भी जगन्नाथ यात्रा के कुछ इसी ढंग से आयोजित किया जाना है।
क्यों निकाली जाती हैं जगन्नाथ रथयात्रा?
रथ यात्रा की परंपरा लगभग 1000 वर्षों से लगातार जारी है। इसके पीछे की मान्यताओं को लेकर कई कथाएं प्रचलित उनमें से एक कथा यह भी है कि भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा एक बार अपने उनके घर आतीं हैं तो नगर भ्रमण की इच्छा जाहिर करतीं हैं। तब श्रीकृष्ण या भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीनों नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं और गुडिंचा मंदिर पहुंचकर विश्राम करते हैं।
एक आधुनिक विचार यह भी है कि राजा रामचंद्र देव एक इस्लामिक महिला से विवाह कर लेते हैं जिससे उनका मंदिर में प्रवेश निषेध है जाता है तब राजा अपनी भक्ति प्रकट करने के लिए रथयात्रा आयोजित करता है। ऐसी ही बहुत सी किंवदंतियां इस रथ यात्रा के संबंध में प्रचलित है।
अक्षय तृतीया से प्रारंभ होता है रथ दूज का पर्व
रथयात्रा का आयोजन अषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को किया जाता है। जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा लकड़ी के रथों पर सवार होकर लगभग तीन किलोमीटर की दूरी तय करके गुडिंचा मंदिर पहुंचते हैं। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु अपने हाथों से रथ को खींचकर रथ यात्रा को आगे बढ़ाने का कार्य करतें हैं।
यह रथयात्रा भले ही आषाढ़ मास में आयोजित होती लेकिन इसकी तैयारी बंसत पंचमी से लकड़ी संग्रह का कार्य शुरू हो जाता है। अक्षय तृतीया से रथ निर्माण का कार्य प्रारंभ होता है। हर साल नये रथों का निर्माण किया जाता है। माना जाता है कि जो इस रथयात्रा में रथों को खींचता है उसे 100 यज्ञों के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस रथ यात्रा में भगवान बलभद्र का रथ सबसे आगे, मध्य में सुभद्रा और अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ चलता है।
गुडिंचा मंदिर पहुंचकर 10 दिन तक विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। और देवशयनी एकादशी को तमाम रीति रिवाजों के साथ इस उत्सव का समापन किया जाता है।
जगन्नाथ यात्रा और महामारी का प्रभाव
कोविड महामारी के प्रसार के मद्देनजर इस बार भी रथ यात्रा में के लिए प्रशासन द्वारा की कड़े प्रतिबंध लागू किए हैं। शहर में रविवार से व दो दिन के लिए कर्फ्यू का ऐलान किया गया है। यात्रा के सुचारू संचालन के लिए पुलिस सहित सैन्य कंपनियों को भी तैनात किया गया है। साथ ही लोगों से अपील की गई है कि वह टेलिविजन तथा अन्य माध्यमों से रथ यात्रा में सम्मिलित होने का लाभ प्राप्त करें।