Biography of Maharaja Chhatrasal in Hindi(महाराजा छत्रसाल की जीवनी)
biography of maharaja chhatrasal:-भारत के इतिहास में ऐसे तमाम नाम है, जिन्होने बाहरी ताक़तो से भारत को वक़्त वक़्त पर बचाया है और अपना परचम लहराया है. ऐसे नाम, उनकी कहानियां, उनके बलिदान और उनका इतिहास इतना महान है.
आप उससे अपने आप को दूर नही रख सकते है, भारत के गौरवपूर्ण इतिहास में एक ऐसा ही नाम है, महाराज छत्रसाल.
उन्होने मुगल शासक औरंगजेब जो उस वक़्त भारत में तबाही मचा रहा था और अपने लड़ाको के साथ मिल के भारत के सुंदर इतिहास को धूमिल कर रहा था उसके खिलाफ जाकर अपने शौर्य और पराक्रम से बुन्देलखंड को अपना राज्य स्थापित किया और वहां के राजा बने.
बुन्देलखंड जो पहले उनके पिता का राज्य हुआ करता था जिनका नाम चम्पतराय था उसकी समृद्धि के लिए अपना सारा जीवन दिया और वहां के उत्तरअधिकारी होने का कर्तव्या निभाया. उन्हे बुन्देलखंड का शिवाजी भी कहते थे.

महाराज छत्रसाल का प्रारंभिक जीवन (biography of maharaja chhatrasal)
महाराजा छत्रसाल का प्रारंभिक जीवन बहुत रोमांचक था उनका जन्म 4 मई 1629 को हुआ, वो एक राज्य जिसका नाम बुन्देलखंड था. उसके उत्तरअधिकारी थे उनके पिता का नाम चम्पतराय था जो बुन्देलखंड के राजा थे।
महाराजा छत्रसाल की माता बहुत बहादुर थी उन्होने अपने बेटे के अंदर साहस और शौर्य कूट कूट के बचपन से ही भरा था. उनका नाम लालकुँवरि था. महाराजा छत्रसाल के माता पिता दोनो ही बहुत वीर थे।
जब भी राजा चम्पतराय लड़ाई को जाते थे या युद्या की तैयारी करते थे, लालकुँवरि उनके साथ रहती थी, जब महाराजा छत्रसाल उनके पेट में थे वो तब भी भारत के वीरों की कहानियां अपने बेटे को सुनती थी दोनो ने महाराजा छत्रसाल को हमेशा धर्म, संस्कृति और ज्ञान की शिक्षा दी।
जब महाराजा छत्रसाल सिर्फ़ 11 साल के थे उनके माता पिता मुगल शासक के खिलाफ लड़ाई के दौरान विंध्याचल पर्वत में घेर लिए गये थे. जिसके बाद उन्होने अपनी जान खुद ही दे दी दुशमन के हाथों मरना मुनासिब नही समझा।
महाराजा छत्रसाल ने युद्ध कौशल की शिक्षा कहा से सीखा?(biography of maharaja chhatrasal)
महाराजा छत्रसाल बुन्देलखंड के होने वाले उत्तर अधिकारी थे, उन्होंने पैदा होने के साथ ही आस पास युद्ध नीति और लड़को को प्रशिक्षण लेते देखा था. लेकिन पूरी तरह से तैयार होने के लिए उनके माता पिता ने उन्हें उनके मामा के पास दिलवारा भेज दिया था।
उनके मामा बहुत बड़े योद्धा थे, फिर जब वो 10 साल के ही हुए तब बुन्देलखंड पर मुग़ल ने आक्रमण कर दिया जिसमें उनके माता पिता दोनों ने लड़ाई लड़ी और आत्मसमर्पण न कर के उन्होंने चारो तरफ से घिरने के बाद खुद को मार लिया लेकिन मुग़ल ने उनका सारा ख़जाना लूट लिया था।
ये बात जब महाराजा छत्रसाल को पता लगी तो बदले की चिंगारी उनके अंदर दौड़ गयी। फिर वो अपने मामा के यहाँ से देवगढ़ चले गए उनके भाई भी उनके साथ थे . उन्होंने अपने पिता को जो भी वचन दिया था उसकी पूर्ति के लिए एक राजकुमारी से विवाह कर लिया, जो पंवार वंश की थी उनका नाम देवकुंअरि था.
उसके बाद उन्होंने राजा जय सिंह के पास पहुंच के उनकी सेना में भर्ती होकर जो उस वक़्त मुग़ल वंश के लिए ही कार्य कर रहे थे, आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण लेना शुरू किया.
जब महाराजा छत्रसाल का सामना पहली बार औरंगजेब से हुआ
महाराजा छत्रसाल ने जब जय सिंह की सेना में आधुनिक सैन्य प्रशिक्षण के लिए भर्ती हुए तब जय सिंह की सेना दिल्ली सल्तनत के लिए पहले से कार्य कर रही थी।
औरंगजेब ने जब जय सिंह की सेना को जब दक्षिण की तरफ जाकर उसे जीतने का कार्य सौपा, तो पहली बार महाराजा छत्रसाल को अपना शौर्य और साहस दिखने का मौका मिला।
उन्होंने युद्धा में अद्भुत काम किया और दक्षिण के राजा को पराजित करने में जी जान झोक दी. लेकिन जीत के बाद जब राजा जय सिंह और छत्रसाल जब वापस आये तो राजा जय सिंह ने औरंगजेब को कहा की वो इस जीत को सिर्फ इसलिए पा पाए क्योंकि महाराजा छत्रसाल ने अद्भुत लड़ाई लड़ी और अपनी जीत को छत्रसाल को समर्पित करना चाहा।
तब औरंगजेब ने हस्तक्षेप करते हुए कहा की नहीं ये जीत तुम्हे सिर्फ मुग़ल सेना के कारण मिली है ना की इस बालक के कारण इस बात से महाराजा छत्रसाल को चोट लगी जिसके बाद उन्होंने अपने रास्ते अलग कर लिए और वह से निकल आये
जब महाराजा छत्रसाल ने छत्रपति शिवाजी महाराज से मिलने को ठानी
उन दिनों सारे भारत पर छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम जोर शोर से सुनाई दे रहा था. वो एक बलवान राजा होने के साथ साथ काफ़ी प्रेरणादाई इंसान भी थे
इसलिए छत्रसाल ने उनसे मिलने की ठानि ये बात इतनी आसान नहीं थी वो किसी से नहीं मिलते थे, लेकिन महाराजा छत्रसाल लगातार महेनत कर के उनके पास तक किसी तरह जा पहुंचे तो छत्रपति शिवाजी ने उन्हें सुनके उनके गुणों को देखते हुए ये बात कही.
करो देस के राज छतारे
हम तुम तें कबहूं नहीं न्यारे।
दौर देस मुगलन को मारो
दपटि दिली के दल संहारो।
तुम हो महावीर मरदाने
करि हो भूमि भोग हम जाने।
जो इतही तुमको हम राखें
तो सब सुयस हमारे भाषें।
शिवाजी से मिलने के बाद राजा छत्रसाल अपनी मातृभूमि लौट आये .
बुंदेलखंड की परिस्थितयां (biography of maharaja chhatrasal)
बुंदेलखंड की परिस्थितिया बहुत ज्यादा अलग हो चुकी थी अब वह मुग़ल शासक था जो लोग बचे थे वो मुग़लों के गुलाम थे और जो भाई बंधू थे वो इतने कमजोर हो चुके थे की उन्होंने मुग़लों के ख़िलाफ जाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी.
जब महाराजा छत्रसाल के पास नहीं थी सेना
महाराजा के पास उस वक़्त कोई भी ख़जाना नहीं था उनके खानदान में कोई भी उनका साथ नहीं दे रहा था और बड़े भाई की मृत्यु हो चुकी थी, उन्होंने ने और लोगों से बात चीत कर के अपने खानदानी ज़ेवर बेच के जो उनके बचपन के एक मित्र ने उन्हें लौटाया था।
उससे एक छोटी सेना तैयार की जिसमें 5 घुड़सवार थे और 20 की संख्या में सैनिक थे, जसिके बाद उन्होंने बुंदेलखंड में मुग़लों के ख़िलाफ धावा बोल दिया.
औरंगजेब और महाराजा छत्रसाल के बीच युध्य
महाराजा छत्रसाल ने जब 11 साल की उम्र में जब से अपने माता पिता और अपने राज्य को खोया था तब से उन्होंने ने दिनरात औरंगजेब का मुकाबला करने के लिए तैयारी की थी, औरंगजेब ने 30000 हज़ार मुग़ल सैनिक और उनके खूंखार लड़ाके छत्रसाल के साथ युद्ध करने के लिए भेजा था.
पर महाराजा छत्रसाल ने युद्धनीति और अपने कौशल के दम पे उनके छक्के छुड़ा दिए। महाराजा छत्रसाल अपने माता पिता की मौत का कारण जानते थे.
इसलिए उन्होंने वो गलती दुबारा नहीं की और सारे आस पास के राज्य जीत के खुद को मजबूत बनाया हर एक सेना भी यही चाहती थी की वो किसी ऐसे राजा के अधीन जो सच में राजा कहलाने लायक हो,
फिर भीषण युद्ध के बाद धीरे धीरे महाराजा ने मुग़ल को बुंदेलखंड से निकाल फेका और अपना राजकोष बढ़ाते गए उनकी संपत्ति धीरे धीरे बढ़ती गयी उनकी जीत के चर्चे सारे भारत वर्ष में होने लगे.
महाराजा छत्रसाल को मिला हुआ था एक अजूबा आशीर्वाद
biography of maharaja chhatrasal in hindi :- भारत के नक्शे के हिसाब से देखा जाए तो बुंदेलखंड मध्यप्रदेश में स्थित है. आज एमपी में हालात ठीक नहीं है. लेकिन जब वहां महाराजा छत्रसाल का राज था बुंदेलखंड समृद्ध हुआ करता था.
उसका इतिहास बहुत ज्यादा सुंदर है, यहा से जितने भी राजा निकले है वो बहुत ही ज्यादा बहादुर हुआ करते थे. ताकतवर मुगल बादशाहों से भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी हमेशा अपने राष्ट्र के और अपने नगर वासियों के प्रति समर्पित रहें.
कहा जाता है महाराजा छत्रसाल को कविताओं में बहुत दिलचस्पी थी. इसके अलावा वो धार्मिक कार्यों और गुरु दीक्षा में भी बहुत मानते थे.
उन्होंने महात्मा प्राणनाथ को अपना गुरु बना रखा था. उनसे वो पन्ना में मुगलों से लड़ाई की तैयारी के दौरान मिले थे. उन्होंने उनसे शिक्षा ली और महात्मा प्राणनाथ ने उन्हें अपनी तलवार उपहार में दी और उनको आशीर्वाद दिया.
“महाराजा छत्रसाल हमेशा विजयी रहेगे. एक महान सम्राट बनेंगे जिसकी मिसालें भारत में सदियों तक दी जाएगी, आपका राज्य में हीरे की खदानें खोदी जाएगी और सारा राज्य आपके राज्य की मिसालें देगा.”
उसके बाद महाराजा छत्रसाल के साथ हुआ भी यही वो फ़िर आखिरी दम तक नहीं हारे. इतिहासकार इस बात को अजूबा कहते हैं और याद करते हुए उस महान राजा को याद करते हैं.
मस्तानी के पिता थे महाराजा छत्रसाल
अगर आपने बॉलीवुड की चर्चित फ़िल्म बाजीराव मस्तानी देखी है, तो आप जरूर जानते होंगे कि महाराजा छत्रसाल और मस्तानी में क्या रिश्ता था. महाराजा छत्रसाल मस्तानी के पिता थे।
उन्होंने मस्तानी की शादी पेशवा बाजीराव प्रथम से की. महाराजा छत्रसाल और पेशवा का रिश्ता बाप बेटे से कम नहीं था, मस्तानी भी इस बात से गर्व महसूस करती थी. पेशवा बाजीराव ने महाराजा छत्रसाल का बहुत साथ दिया और काफ़ी लड़ाई उन्होंने साथ में मिल कर लड़ी.
महाराजा ने अपने जीवन की आखिरी लड़ाई अपने बुढ़ापे में लड़ ली थी लेकिन तब उन्होंने पेशवा बाजीराव के अलावा और भी राजाओं से मदद ली और मुगल को हराकर बुंदेलखंड को पूरी तरह आज़ाद कर के शान से स्वर्ग गए.
उनसे जुड़े हुए लोग आज भी मौजूद है और उनके नाम का म्युजियम भी है. इस प्रकार की महाराज छत्रसाल की जीवनी थी।
आखिरकार राजा बने महाराजा छत्रसाल
महाराजा छत्रसाल ने अपनी जिंदगी भर स्वतंत्रता का ख्वाब देखा और उसे पूरा भी कर दिया उनके राष्ट्र प्रेम और नीतिकारिता की वजह से उसे हासिल भी किया.
1644 में महाराजा छत्रसाल का राज्यभिषेक किया गया जिसकी अगवाई योगिराज प्राणनाथ ने की, उनकी विशाल सेना में 70 से भी ज्यादा सरदार थे.
महाराजा छत्रसाल ने बहुत सारे मुग़ल को हराया था जिससे मुग़ल सरदार तहवर खा,सय्यद अफगान और दलाह खान पहले ही बुंदेलों से पराजित होकर भाग खड़े हुए थे।
महाराजा छत्रसाल के गुरु महात्मा प्राण नाथ एक धार्मिक गुरु थे उन्होंने अपनी सारी जिंदगी हिन्दू मुस्लिम एकता को दे दी उन्होंने महाराजा को हमेशा धर्म के मार्ग पे चलने के लिए प्रेरित किया
महाराजा छत्रसाल को शिवाजी महाराज का वादा
महाराजा जब राजा जय सिंह की सेना से निकल के छत्रपति शिवाजी महाराज से मिलने गए थे उस वक़्त उन्होंने उनसे वादा किया था की जब उन्हें जरुरत होगी तो वो उनका साथ जरूर देंगे, फिर कई साल बाद जब महाराजा छत्रसाल बूढ़े हो रहे थे।
तब मुग़ल ने फिर से उनपर आक्रमण करना चाहा तब उन्होंने शिवाजी साम्राज्य से मदद मांगी तबतक महाराजा छत्रसाल का नाम पूरी भारत वर्ष में फ़ैल चुका था.
बाजी राव पेशवा प्रथम ने ये सन्देश पढ़ के तुरंत राजा छत्रसाल की मदद करनी की योजना बनाई और अपनी सेना के साथ बुंदेलखंड आ गए और भीषण युद्धा के बाद उन्होंने फिर से जीत हासिल की
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जीत के बाद बाजीराव पेशवा को उन्होंने तीसरा पुत्र स्वीकारा
इस जीत तक महाराजा छत्रसाल काफ़ी ज्यादा धनी हो चुके थे और बाजी राव की वीरता से प्रसन्न होकर उन्होंने अपनी संपत्ति का तीसरा हिस्सा उनको सौपने का फैसला किया उन्होंने बाजी राव पेशवा को उस वक़्त की ३३ लाख रुपये की जागीर सौपी
वीर महाराजा छत्रसाल का निधन
महाराजा ने अपनी सारी जिंदगी शान से जी और अपने राष्ट्र का निर्माण किया जिसकी उन्होंने बचपन से कल्पना की थी लेकिन इस दुनिया में जो आया है वो जायेगा भी इस वीर राजा ने अपनी आखरी सांस 83 साल की उम्र में ली . इस प्रकार biography of maharaja chhatrasal in hindi का समापन होता है।
biography of maharaja chhatrasal in hindi कैसी लगी अपनी राय जरूर व्यक्त करें।