अधिवक्ता संरक्षण विधेयक 2021 :-Advocate Protection Bill 2021
वकालत एक जंग है जो गोला बारूद से नहीं, दिमाग के घोड़े दौड़ाने से जीती जाती है। निडरता से काम करेंगे वकील एडवोकेट्स प्रोटेक्शन एक्ट प्रदेश के सभी वकीलों का देखा हुआ साझा सपना था।
राज्य सरकार ने इस पर गंभीरता दिखते हुए इसे लागू किया, यह स्वागत योग्य है।
इस एक्ट के लागू होने से वकीलों को न्याय हित में और निडरता से काम करने के लिए मिलेगा।
2 जुलाई 2021 को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक विधेयक प्रकाशित किया जिससे आज अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम 2021 के नाम से जाना जाता है।
अधिवक्ता अधिनियम 1961:-
अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम इस अधिनियम की बात करें तो इससे पहले 1961 में एक अधिनियम अधिवक्ता अधिनियम पारित किया गया था जिसकी खूबियां और खामियां जनता को जानना आवश्यक हो जाता है.
बात जब अधिवक्ता अधिनियम 1961 आती है तो यहां अधिनियम अधिवक्ता के अधिकार व कर्तव्य और दायित्व आदि को बताता है।
इस अधिनियम में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा दिए गए आधिकारिक अधिवक्ता के कर्तव्य और अधिकारों को बताते हुए उनको यहां दिशा निर्देश देता है कि वह कोर्ट में किस तरह से प्रैक्टिस कर सकते हैं।
वह बार में किस तरह से रजिस्टर्ड हो सकते हैं और किस तरह से वहां एक स्पेशल यूनिफार्म में रहकर कोर्ट में अपने कर्तव्य का पालन करेंगे ताकि इस व्यवसाय को समाज में उचित मान और सम्मान मिल सके.
और इस अधिनियम के अंतर्गत यह बताया गया कि स्टेट बार काउंसिल की शक्तियां क्या है और एक अधिवक्ता की क्या ड्यूटी बनती है अपने क्लाइंट के प्रति और एडवोकेट और उसके क्लाइंट का कैसा संबंध होना चाहिए लीगल प्रोफेशन की महत्वता क्या है इत्यादि ।
कुल मिलाकर 1961 के इस अधिवक्ता अधिनियम में 60 धाराएं बताई गई परंतु इस अधिनियम की एक बड़ी खामी यह थी कि इसमें अधिनियम के संरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था।
यह सभी जानते हैं कि कोई भी ही मामला होता है जो दो पार्टियों के बीच का विवाद होता है। उसको को सुलझाने के लिए दोनों में से दोनों ही अलग-अलग अपना अधिवक्ता नियुक्त करते हैं और कुछ अधिवक्ता इतने ईमानदार और अपने व्यवसाय के प्रति इतनी गंभीरता से उससे को सुलझाने की कोशिश करते हैं.
जिससे कि दूसरी ओर जो विपक्ष अभियुक्ता होता है। यह समझ जाता है कि यह वकील बहुत ज्यादा ईमानदार है और अपने कर्तव्य के प्रति बहुत जागरूक है .
और यह इतनी इमानदारी से काम करेगा तो आगे चलकर हम दोषी करार हो जाएंगे।इसी भय से और इसी कारण वर्ष कई अधिवक्ताओं की हत्या कर दी जाती है.
जिससे कोई भी कानून ऐसा नहीं था कि उनको संरक्षण मिल सके।परंतु 2019 में सर्वप्रथम मध्यप्रदेश में यहां अधिनियम पारित करने पर विचार किया गया।
जो लोग इलाहाबाद क्षेत्र से हैं, वह यह जानते होंगे कि बीते तीन-चार वर्षों में लगभग 15 से 20 अधिवक्ताओं की हत्या कर दी गई।भारत के अंदर मध्य प्रदेश पहला ऐसा राज्य बना जहां अधिवक्ताओं को संरक्षण अधिनियम पारित किया गया।
और इसी के बाद 2 जुलाई 2021 को पूरे भारत में अधिवक्ता संरक्षण विधेयक 2021 प्रकाशित किया गया।सर्वप्रथम 10, 6, 2021 को एक मीटिंग की गई जिसमें 7 मेंबर की कमेटी का गठन किया गया इसके अंतर्गत-सदस्य समिति !
इसे भी पढ़े :- U P में आने वाली 2021 में सरकारी नौकरियां
सात सदस्य की कमेटी –
1. वरिष्ठ अधिवक्ता एस प्रभाकरण, उपाध्यक्ष, बार काउंसिल ऑफ इंडिया; 2.वरिष्ठ अधिवक्ता देवी प्रसाद ढाल, कार्यकारी अध्यक्ष, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट; 3. अधिवक्ता सुरेश चंद्र श्रीमाली, सह-अध्यक्ष, बार काउंसिल ऑफ इंडिया; 4. अधिवक्ता शैलेंद्र दुबे, सदस्य, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, 5.एडवोकेट ए रामी रेड्डी, कार्यकारी उपाध्यक्ष, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट; 6. एडवोकेट श्रीनाथ त्रिपाठी, सदस्य, बार काउंसिल ऑफ इंडिया; और 7. अधिवक्ता प्रशांत कुमार सिंह, सदस्य, बार काउंसिल ऑफ इंडिया।सात सदस्य की कमेटी ने 2 जुलाई 2021 को यह अधिनियम पारित किया। जिसमेे अधिवक्ता के संरक्षण के लिए कुछ विशेष गुण का प्रावधान है।
अधिनियम के प्रावधान-
*सर्वप्रथम इसमें एक फंड का प्रावधान किया गया है जिसमें किसी भी अधिवक्ता को किसी भी प्रकार की हानि या नुकसान होने पर वह कंपनसेशन का दावा कर सकता है।
*अधिवक्ताओं के संरक्षण के लिए इस अधिनियम में यह प्रावधान रखा गया कि कोई भी अधिवक्ता को बंदूक और रिवाल्वर के लाइसेंस आसानी से प्रदान किया जा सकता है।
*इस अधिनियम के अंतर्गत यह भी प्रावधान किया गया है कि कोई भी उच्च न्यायालय के आदेश के बिना बहुत ही रेल मामलों में ही एडवोकेट के विरूध संज्ञान लिया जा सकता है और इसके अगेंस्ट इसके अलावा कोई भी एडवोकेट के विरुद्ध संज्ञान नहीं लिया जा सकता है.
तथा किसी भी अधिवक्ता के अगेंस्ट से कोई भी मुकदमा दर्ज होता है तो वह कोर्ट संज्ञान लेने से पहले वह एक प्रॉपर इंक्वायरी करवाएगी क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है लेकिन लोग झूठा इलजाम एडवोकेट पर लगा देते हैं ताकि उनका बार का रजिस्ट्रेशन रद्द करवा सके और भी अन्य कारण से।
*इस अधिनियम के अंतर्गत यह भी प्रावधान रखा गया कि किसी भी एडवोकेट को अपने ड्यूटी परफॉर्म करते समय कोई भी धमकी देता है या कुछ उसको जान का खतरा रहता है तो पुलिस के पास जाकर एफ आई आर(FIR) दर्ज कर सकता है और पुलिस को यह एफ आई आर दर्ज करनी ही होगी।
*इसमे अधिनियम के अंतर्गत एक अलग जुडिशल कमेटी का गठन किया जाएगा जिसमें अधिवक्ता के विरुद्ध जो भी मुकदमा दर्ज किया गया है, उसकी एक अलग से इंक्वायरी की जा सके जुडिशल कमेटी के गठन से यह होगा कि एडवोकेट का ट्रायल शीघ्र ही किया जाएगा और बाकी जो भी प्रक्रिया होगी, वह शीघ्र ही निपटाए जाएगी।
*एक अधिवक्ता जब वहां बार में रजिस्ट्रेशन हो जाता है, अपना 3 साल का है। 5 साल का है, वकालत कंप्लीट कर लेता है। वह एक तरह से कोर्ट का ऑफिसर हो जाता है.
और अगर कोर्ट के ऑफिसर को कोई गाली देता है या धमकी देता है तो उसके संरक्षण के लिए इस अधिनियम में यह प्रावधान रखा गया कि 1 से 10 साल का कारावास हो सकता है और 10 साल 1000000 तक का जुर्माना लगया जा सकता है !
*जो भी अधिवक्ता की स्वतंत्रता को भंग करता है।यदि अधिवक्ता के साथ कोई भी मुकदमा चलता है तो उसका ट्रायल डिस्टिक कोर्ट में और सेशन जज ही कर सकता है।
यदि किसी भी अधिवक्ता के विरुद्ध कोई भी मुकदमा चलता है तो वहां अधिवक्ता उच्च न्यायालय से पुलिस प्रोटेक्शन ले सकता है।
*अधिवक्ता के विरुद्ध किया गया कोई भी ऐसा मुकदमा जिसमें है वह निर्दोष साबित होता है तो यह एक कंपाउंडेबल ऑफेंस है। यदि अगर हाई कोट या एडवोकेट खुद से चाहे कंपाउंड करना।
*किसी भी अधिवक्ता का कोई भी अन्य व्यक्ति से विवाद होता है या उसको किसी व्यक्ति से धमकी मिलती है तो कोई भी पुलिस ऑफिसर डायरेक्ट किसी अधिवक्ता को गिरफ्तार नहीं कर सकता है। बिना सीजेएम यानी चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट की आदेश के बिना।

*किसी भी अधिवक्ता का किसी भी अन्य व्यक्ति से कोई भी विवाद होता है तो उसकी इन्वेस्टिगेशन 30 दिन के अंदर ही पुलिस को करनी होगी और ऐसे विवादों में जो अधिवक्ता से संबंधित है डीएसपी इन्वेस्टिगेशन करेगा (डिप्टी सुपरिटेंडेंट पुलिस)।
*जिस भी व्यक्ति ने किसी भी अधिवक्ता के विरुद्ध कोई ऐसा मुकदमा दर्ज कराया है उस व्यक्ति को पुलिस विदाउट वारंट रेस्ट कर सकती है और यह नॉन बेलेबल ऑफेंस होगा तथा उसमे आसानी से बेल का प्रावधान नहीं है।इस तरह से अधिवक्ता की सुरक्षा को ध्यान में रखकर यहां अधिनियम संरक्षण पारित किया गया।
एक विवाद हुआ था, तेलंगाना में है जिसमें है गट्टू बरम्मा रॉय और उसकी पत्नी की बीच रोड पर हत्या कर दी गई थी और इस तरह के कई मामले ऐसे हुए है.
जहां में सीबीआई रेड पड़ी और अधिवक्ता अपने ही स्वतंत्रता से काम करने में बाधित हुए कई बार ऐसे अधिवक्ता अपने व्यवसाय की ही वजह से अपने निजी जिंदगी में असुरक्षित हुए इसको देखते हुए.
यहां अधिवक्ताओं की मांग थी और अब वर्तमान समय की जरूरत भी अधिवक्ताओं पर हो रही अपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए और वह निडर होकर अपने क्षेत्र में काम करें। इसके इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है। इस अधिनियम संरक्षण लागू करना।
ReplyForward |